रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच एक बड़ा मानवीय समझौता हुआ है। रूस ने युद्ध में मारे गए 1,000 यूक्रेनी सैनिकों के शव यूक्रेन को सौंप दिए हैं। यह कदम इस्तांबुल में हुई वार्ता के तहत किए गए समझौतों के अंतर्गत मानवीय दृष्टिकोण से उठाया गया है। यह जानकारी बुधवार को रूसी वार्ताकार व्लादिमीर मेडिंस्की ने दी। वहीं, रूसी मीडिया आरटी के अनुसार, इस आदान-प्रदान के दौरान यूक्रेन ने भी रूस को उसके 19 मृत सैनिकों के शव लौटाए हैं। युद्ध के दौरान शवों की यह वापसी दोनों देशों के बीच मानवीय भावना को प्राथमिकता देने का संकेत है।
मानव संवेदनाओं को ध्यान में रखकर हुआ समझौता
रूसी वार्ताकार मेडिंस्की ने कहा कि इस प्रक्रिया को दोनों देशों के बीच चल रहे सैन्य संघर्ष के बीच मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए पूरा किया गया। उन्होंने कहा, “हम आशा करते हैं कि अब ये सैनिक अपने देश की मिट्टी में सम्मानपूर्वक विश्राम कर पाएंगे। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।” इस प्रकार का मानवीय प्रयास उन परिवारों के लिए राहत लेकर आता है, जिन्होंने अपने परिवारजनों को इस युद्ध में खोया है। युद्ध के इस कठिन समय में भी, शवों की वापसी दोनों देशों के बीच आंशिक संवाद की कड़ी के रूप में देखी जा रही है, जिससे उम्मीद की किरण बनी हुई है।
2022 की इस्तांबुल वार्ता का परिणाम है यह पहल
रूस और यूक्रेन के बीच शवों की इस वापसी का आधार 2022 में इस्तांबुल में हुई वार्ता है। इस दौरान दोनों देशों के बीच मानवीय समझौते किए गए थे, जिनका उद्देश्य युद्ध में मारे गए लोगों के शवों की सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित करना था। इसे रूस और यूक्रेन के बीच शवों की सबसे बड़ी वापसी में से एक माना जा रहा है। इस मानवीय पहल को दोनों देशों के बीच बातचीत और रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में एक छोटे कदम के रूप में देखा जा रहा है, हालांकि युद्ध का संकट अभी भी जमीन पर जारी है।
युद्ध में हजारों सैनिकों और नागरिकों ने गंवाई जान
रूस-यूक्रेन युद्ध को 3 साल से ज्यादा समय हो चुका है और इस दौरान दोनों देशों की सेनाओं और आम नागरिकों में हजारों की संख्या में लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यूक्रेन की ओर से इस शव वापसी को लेकर अब तक कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया गया है, लेकिन कीव में आमतौर पर इस प्रकार के आदान-प्रदान को पीड़ित परिवारों के लिए राहत और राष्ट्रीय सम्मान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस प्रक्रिया से उन परिवारों को अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार का अवसर मिल सकेगा, जिससे उनके मन में शांति का अनुभव होगा। यह पहल इस बात का संकेत है कि युद्ध की विभीषिका के बीच भी मानवता का स्थान सर्वोच्च है और संवाद की संभावनाओं को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता।
