उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस महीने की शुरुआत में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में 10 जुलाई को एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि वह ‘सही समय’ पर रिटायर होंगे, जो अगस्त 2027 होगा, अगर ईश्वर की कृपा रही। उस समय किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि सिर्फ दस दिनों के भीतर वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। उनके इस फैसले से देशभर में चर्चा का माहौल बन गया है। उपराष्ट्रपति का पद देश की संवैधानिक व्यवस्था में दूसरा सबसे बड़ा पद होता है और उनके अचानक इस्तीफे ने सभी को हैरान कर दिया।
स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए दिया इस्तीफा
धनखड़ ने अपने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे अपने पत्र में लिखा, “स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए मैं संविधान के अनुच्छेद 67 (A) में उल्लेखित प्रावधानों के अनुसार तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।” अपने पत्र में उन्होंने राष्ट्रपति का आभार व्यक्त किया और उनके साथ बेहतरीन कार्य संबंध की प्रशंसा की। उन्होंने लिखा, “मैं माननीय राष्ट्रपति का उनके निरंतर समर्थन और हमारे बेहतरीन कार्य संबंध के लिए गहन आभारी हूं।” इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद का भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा और अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। उन्होंने संसद के सभी सदस्यों के प्रेम और विश्वास का भी धन्यवाद किया।
राजस्थान से जुड़े हैं धनखड़ के जीवन की जड़ें
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का जीवन एक साधारण किसान परिवार से शुरू होकर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों तक पहुंचने की प्रेरक कहानी है। उनका जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में प्राप्त करने के बाद उन्होंने सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ में पढ़ाई की। वह NDA में चयनित हुए थे लेकिन उन्होंने वहां जाने का फैसला नहीं किया। इसके बाद राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर LLB की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने जयपुर में रहते हुए वकालत शुरू की। उन्होंने अपने जीवन में कई संघर्ष किए और कड़ी मेहनत के बल पर राजनीति और प्रशासन में महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया। 70 वर्षीय धनखड़ को 30 जुलाई 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बंगाल का 28वां राज्यपाल नियुक्त किया था।
राजनीति और प्रशासन में रहा सक्रिय योगदान
धनखड़ का राजनीतिक करियर भी उल्लेखनीय रहा है। वे 1989 से 1991 तक राजस्थान की झुंझुनू लोकसभा सीट से सांसद रहे और इसी दौरान वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकारों में केंद्रीय मंत्री भी रहे। अपने राजनीतिक और प्रशासनिक करियर में उन्होंने संवैधानिक मूल्यों का पालन करते हुए कार्य किया और जनता के हित में निर्णय लिए। उपराष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने संसद में उच्चतम मानदंडों का पालन किया और संसदीय प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करने में योगदान दिया। उनके इस्तीफे के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पद पर किसे नामित करती है। देश में उनके इस्तीफे से एक खालीपन महसूस किया जा रहा है, लेकिन उनके द्वारा लिए गए निर्णय का सभी सम्मान कर रहे हैं और उनके स्वस्थ जीवन की कामना कर रहे हैं।
