Health News: तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में जब दिमाग पर काम, पढ़ाई या सोशल इंटरैक्शन का बोझ बढ़ने लगे, तो जेन-ज़ी एक खास तरीका अपनाती है। वह है – बाथरूम कैंपिंग। इसका मतलब है कि जब सब कुछ भारी लगने लगे, तो कुछ देर के लिए वॉशरूम में जाकर अकेले बैठ जाना। मोबाइल पर संगीत सुनना, इंस्टाग्राम रील्स देखना या बस आंखें बंद करके गहरी सांसें लेना। बाथरूम को वह अपना ‘सेफ स्पेस’ मानते हैं जहां उन्हें कोई टोका-टोकी या जजमेंट नहीं मिलता।
मानसिक राहत या आत्मछल ?
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह ट्रेंड दिखाता है कि नई पीढ़ी अब अपने मानसिक तनाव को हल्के में नहीं लेती। डॉ. एके कुमार (मनोचिकित्सक, गाजियाबाद जिला अस्पताल) के अनुसार, कुछ मिनटों का ये अकेलापन दिमाग को रिफ्रेश करने में मदद करता है। हालांकि, ये राहत अस्थायी हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति बार-बार समाज से कटना चाहता है या लगातार अकेलापन ढूंढ रहा है, तो यह चिंता, बर्नआउट या सोशल एंग्जायटी के संकेत भी हो सकते हैं।
सोशल मीडिया पर क्यों वायरल है बाथरूम कैंपिंग?
इंस्टाग्राम, टिकटॉक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर बाथरूम कैंपिंग को लेकर हजारों वीडियो और रील्स वायरल हो रही हैं। कोई इसे “मॉर्डन माइंडफुलनेस” कह रहा है तो कोई “रियलिटी से भागना” मानता है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि जेन-ज़ी को यह अच्छे से पता है कि उन्हें कब ब्रेक चाहिए। यही वजह है कि वे अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति और अधिक जागरूक हैं।
कहां है खतरे की घंटी?
अगर कोई व्यक्ति हर रोज़, हर कुछ घंटों में इस तरह से खुद को ‘सेफ स्पेस’ में भेज रहा है, तो यह नॉर्मल नहीं है। यह सामाजिक तनाव से बचने या काम की जिम्मेदारियों से भागने का संकेत हो सकता है। मनोचिकित्सकों के अनुसार, अगर ये पैटर्न रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करने लगे, तो पेशेवर मदद लेना ज़रूरी है।
समझें और नजरअंदाज न करें
बाथरूम कैंपिंग को मज़ाक या सिर्फ सोशल ट्रेंड मानकर नज़रअंदाज करना सही नहीं है। यह पीढ़ी की मानसिक थकान, भावनात्मक दबाव और अकेलेपन से लड़ने की एक छोटी सी कोशिश है। अगर सही समय पर इस व्यवहार को समझा जाए और ज़रूरत पड़ने पर मदद ली जाए, तो यह मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में एक सकारात्मक कदम बन सकता है।
तेजी से भागती दुनिया में एक ठहराव
आज की दुनिया रफ्तार की दुनिया है। सुबह उठते ही मोबाइल स्क्रीन से लेकर ऑफिस के मीटिंग नोट तक सब कुछ तेज चलता है। बात हो या काम सब कुछ बिना रुके चलता रहता है। ऐसे माहौल में बाथरूम कैंपिंग जैसा ट्रेंड बताता है कि आज की पीढ़ी रुकना सीख रही है। वह पल भर की राहत की तलाश में है। और यह राहत उन्हें सबसे अनोखी जगह में मिल रही है – बाथरूम में।
क्यों हो रहा है ट्रेंड में
भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोगों को अब बाथरूम ही एक ऐसी जगह लगती है जहां कोई डिस्टर्ब नहीं करता। ऑफिस की मीटिंग हो या घर की भागदौड़ हर किसी से बचने के लिए लोग बाथरूम में खुद को लॉक कर रहे हैं और यही बन गया है बाथरूम कैंपिंग।
क्या सिर्फ यंगस्टर्स ही कर रहे हैं
ये ट्रेंड केवल युवा नहीं बल्कि हर उम्र के लोग आज़मा रहे हैं। कुछ लोग बाथटब में बैठकर मूवी देखते हैं तो कुछ मोमबत्तियां जलाकर खुद को रिलैक्स करते हैं। बाथरूम अब सिर्फ नहाने की जगह नहीं रह गया बल्कि एक माइंड डिटॉक्स ज़ोन बन गया है।
मेंटल हेल्थ से क्या है कनेक्शन
बाथरूम कैंपिंग को कुछ लोग स्ट्रेस रिलीफ का तरीका मान रहे हैं। यह एक तरह का माइंडफुल ब्रेक है जहां इंसान खुद के साथ समय बिताता है। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि एकांत में बैठना दिमाग को रीसेट करने में मदद करता है।
सोशल मीडिया पर वायरल
इंस्टाग्राम और टिक टॉक पर #BathroomCamping ट्रेंड बन चुका है। लोग अपने बाथरूम सेटअप की तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। कहीं किताबें हैं कहीं लैपटॉप तो कहीं प्लांट्स और मोमबत्तियां। कुछ लोग इसे ‘सोल स्पा’ भी कह रहे हैं।
