बिहारी बाग के इलाहाबादी सफेदा अमरूद की कुछ बात ही अलग, स्वाद के मामले देता है दूसरे अमरूदों को टक्कर
Allahabadi Safeda guava : विंध्य तमाम चीजो के लिए प्रसिद्ध है।उसमें एक है यहां के अमरूद। जिसकी डिमांड प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी है। यहां बिहारी बाग में करीब 1600 अमरूद के पेड़ लगे है। इस बाग में दो वरायटी के अमरूद है। जिसके में लखनऊ 49, और अलाहाबादी सफेदा अमरूद है। इस अमरूद की दूर-दूर तक चर्चा है। इसलिए व्यापारी और ग्राहक भी यहां के अमरूदों को ज्यादा पसदं करते हैं।
दरअसल मैहर जिले के अमरपाटन क्षेत्र के रामनगर रोड स्थित प्रतापगढ़ बिहारी बाग में अमरूद की 1600 पेड़ो की बाग है। यहां के इलाहाबादी अमरूद और लखनऊ 49 के स्वाद का कोई जवाब नहीं है। इस साल भी इसकी अच्छी पैदावार भी हुई है। वैसे तो यहां अमरूदों की वैरायटी तो बहुत हैं।लेकिन जो मजा अलाहाबादी सफेदा अमरूद और लखनऊ 49 अमरूदों में है वो किसी और अमरूद में नहीं है। बागबानों को इसके दाम भी अच्छे मिल जाते हैं।अमरूद को पेड़ से तोड़ने के लिए लगभग 12 कर्मचारी लगाए गए है।
अलाहाबादी सफेदा लोग ज्यादा पंसद करते है!
प्रतापगढ़ बगीचे के मालिक वीरेंद्र सिंह ने सतना टाइम्स डॉट इन से बातचीत के दौरान बताया कि हमारे यहाँ दो वरायटी के अमरूद लगाए गए है।जिसमे से एक है लखनऊ 49 और दूसरा इलाहाबादी सफेदा है।इसकी डिमांड ज्यादा है।स्वाद भी अच्छा है।वैसे तो लाल अमरूद भी आता है लेकिन उसकी बाजार में डिमांड और और स्वाद भी खाने में अच्छा नही होता है।लोग ज्यादातर इलाहाबादी सफेदा ही पसन्द करते है।यहां के अमरूद बिलासपुर जाते है।फिर वहा से भी दूसरे जगह जाते होंगे। बगीचे में लगभग दो हजार पेड़ थे जिसमें से 300 पेड़ खराब हो गए है।दस क्विंटल अमरूद नीचे गिरकर खराब हो जाते है।
वायरस है या फंगस कोई बता नही पाया!
बागीचे के मालिक वीरेंद्र सिंह ने आगे बताया कि पेड़ ऊपर से सुखना शुरू कर देते है और देखते ही देखते पेड़ पूरी तरह से सूख जाता है। करीब सात से आठ बड़े पेड़ इस कारण से खराब हो चुके है।हमने कई जगह इसके बारे में जानकारी ली लेकिन अभी तक पता नही चल पा रहा कि ये वायरस है या फंगस है।सबसे ज्यादा नुकसान भावनात्मक स्तर में देखने को मिलता है।क्योंकि एक पेड़ को छोटे पौधे के रूप में लगाये उसकी देखरेख करे।और फिर जब फल देने के उमसें आते है तो सूख जाते है।
ढाई सौ कैरेट प्रतिदिन निकलते अमरूद
40 सालो से बागवानी कर रहे कोदुलाल यादव ने सतना टाइम्स डॉट इन से बातचीत के दौरान बताया कि 250 कैरेट प्रतिदिन अमरूद निकल आते है।सुबह से लेकर शाम तक हम लोग यहां काम करते है।कर्मचारियों द्वारा अमरूद को पेड़ से तोड़कर कैरेट में जमाते है। गाड़ी आती है तो उसमें लोड कर भेज देते है।जंगली जानवर भी यहां आते जो काफी नुकसान करते है।