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कारगिल विजय दिवस की 25 वीं वर्षगांठ पर पढ़िए कारगिल युद्ध की दास्तां

”ये दिल मांगे मोर सर” कैप्टन विक्रम बत्तरा का यह यह डायलॉग सभी हिंदुस्तानियों के दिल में बस गया है. आज से ठीक 25 वर्ष पहले 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने इतिहास के पन्नों में लिखी थी अपने शौर्य की गाथा.

1971 में हुए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी रही. इसके बाद जब दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किया तो यह तनाव और भी अधिक विस्तृत होगया. स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए. जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था लेकिन पाकिस्तान अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लग. पाकिस्तान ने इस घुसपैठ का नाम “ऑपरेशन बद्र” रखा था.

इस घुसपैठ का मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटा काश्मीर को अपने हिस्से में लेना था.

जब भारतीय सेना ठंड के कारण पोस्ट छोड़कर नीचे बेस कैंप पर आ गई थी. तब इसका फायदा उठा पाकिस्तान ने 5000 सैनिकों के साथ भारतीय सेना के बेसों पर कब्जा कर लिया. तब पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल की पहाड़ियों से खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने सी ’ऑपरेशन विजय’ की शुरूआत की. इस ऑपरेशन में 2 लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था. 60 दिनों के युद्ध के बाद 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को हरा कारगिल की पहाड़ियों में एक बार फिर से हिंदुस्तान का झंडा गाड़ दिया.
इस युद्ध में भारतीय सेना के 490 जवानों ने अपने प्राणों को आहूति मां भारती को अर्पित कर दी. कश्मीर राइफल्स और राजपूताना राइफल्स के जवानों के शौर्य ने इस मिशन को पूर्ण किया.

इस युद्ध के नायक रहे कैप्टन विक्रम बत्तरा को उनपर बनी फिल्म शेरशाह के कारण सभी उनकी शौर्य की गाथा से अवगत हो गए.
लेकिन कैप्टन विक्रम बत्तरा के अलावा इस युद्ध में और भी जवानों ने अपने पराक्रम से भारत माता को गौरवान्वित किया. इनमें शामिल है कै. सौरभ कालिया पालमपुर से, ग्रेनेडियर विजेंद्र सिंह देहरा से, नायक ब्रह्म दास नगरोटा से, राइफल मैन राकेश कुमार गोपालपुर से, राइफलमैन अशोक कुमार एवं नायक वीर सिंह जवाली से, नायक लखवीर सिंह, राइफलमैन संतोष सिंह और राइफलमैन जगजीत सिंह नूरपुर से, हवलदार सुरेंद्र सिंह, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह ज्वाली से, राइफलमैन जंग महत धर्मशाला से.

इस युद्ध के बाद से पाकिस्तान ने भारत के शौर्य एवं पराक्रम को जान लिया. कारगिल युद्ध की यह जीत प्रेरित करती हैं भारत के हर एक युवा को देशभक्ति के लिए. आज भी जब हम कारगिल युद्ध के योद्धाओं की गाथा को सुनते हैं तो हमारा सीना गर्व से भर जाता है और दिल से सिर्फ एक ही आवाज निकलती है ”सारे जहां से अच्छे, भारत मां के बच्चे”. अंत में नमन है कारगिल युद्ध में शामिल योद्धाओं के शौर्य, त्याग एवम् पराक्रम को.

JAYDEV VISHWAKARMA

पत्रकारिता में 4 साल से कार्यरत। सामाजिक सरोकार, सकारात्मक मुद्दों, राजनीतिक, स्वास्थ्य व आमजन से जुड़े विषयों पर खबर लिखने का अनुभव। Founder & Ceo - Satna Times

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