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भारतीय राजनीति के महान सोशल इंजीनियर थे नानाजी..!

भारतीय राजनीति के
महान सोशल इंजीनियर थे
नानाजी..।
पुण्यस्मरण/जयराम शुक्ल
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“दूसरी गुलामी से मुक्ति का आंदोलन परवान पर नहीं चढता यदि जेपी को नानाजी जैसे सारथी नहीं मिले होते।”
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वैचारिक पृष्ठभूमि अलग-अलग होते हुए भी जेपी और नाना जी के बीच दुर्लभ साम्य है। जेपी विजनरी थे, नानाजी मिशनरी। दोनों ने ही लोकनीति को राजनीति से ऊपर रखा। जेपी संपूर्ण क्रांति के उद्घोषक थे तो नानाजी इसके प्रचारक। दोनों एक दूसरे के लिए अपरिहार्य थे। सन् 74 के पटना आंदोलन में जब पुलिस की लाठी जेपी पर उठी तो उसे नानाजी झेल गए। वही लाठी फिर इंदिरा गांधी के निरंकुश शासन से मुक्ति की वजह बनी।

भारतीय राजनीति केमहान सोशल इंजीनियर थे
नानाजी..।
फ़ोटो सतना टाइम्स डॉट इन

नानाजी भारतीय राजनीति के पहले सोशल इंजीनियर थे। भारतीय जनसंघ को विपक्ष की राजनीति में जो सर्वस्वीकार्यता मिली उसके पीछे नानाजी के भीतर चौबीस घंटे जाग्रत रहने वाला कुशल संगठक की ही भूमिका थी।

1960 के बाद के घटनाक्रम देखें तो लगता है कि नानाजी और जेपी का मिलन ईश्वरीय आदेश ही था। अब इन दोनों को अलग अलग व्यक्तित्व के रूप में परखें तो भी इनका ओर-छोर एक दूसरे से उलझा हुआ मिलेगा। ये दोनों रेल की समानांतर पटरियां जैसे नहीं अपितु पटरी और रेलगाड़ी के बीच जो रिश्ता होता है वे थे। जेपी और नानाजी में पटरी और गाड़ी की भूमिका की अदला बदली जेपी के जीवन पर्यंत चलती रही।


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दूसरी गुलामी से मुक्ति का आंदोलन परवान पर नहीं चढता यदि जेपी को नानाजी जैसे सारथी नहीं मिले होते। नानाजी संपूर्णक्रांति के संगठक तो थे ही, आपातकाल के बाद जनता पार्टी के प्रमुख योजनाकार भी रहे। संघ का मनोबल और जनसंघ का नेटवर्क नहीं होता तो जनतापार्टी काँग्रेस से निकले हुए लोगों का कुनबा बनके रह जाती।

यह शायद कम लोगों को ही पता है कि आपातकाल हटाने के बाद सभी नेता रिहा कर दिए गए एक नानाजी को छोड़कर। इंदिरा जी ने इसपर तर्क दिया कि चुनाव लड़ने वाले तो सभी रिहा कर दिए गए क्या नानाजी देशमुख भी चुनाव लड़ेंगे? नानाजी ने कहा वे जेल में ही दिन काट लेंगे, चुनाव लड़ना अपना काम नहीं.. उनका कहना था..अब संघर्ष नहीं समन्वय, सत्ता नहीं अंतिम छोर पर खड़े मनुष्य की सेवा.. बस यही ध्येय है।

रामनाथ गोयनका ने जेपी को इसके लिए मनाया कि नानाजी चुनाव लड़े। जेपी के आग्रह पर नानाजी ने चुनाव लड़ने की सहमति दी। जेल से बाहर आए,बलरामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा,पौने दो लाख मतों से जीते।

जनता पार्टी की सरकार गठन होने के बाद सत्ता में भागीदारी की होड़ मच गई। मोरारजी ने नानाजी से बात किए बगैर उन्हें उद्योग मंत्री बनाने की घोषणा कर दी। नानाजी ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार करते हुए कहा कि 60 वर्ष की उम्र पार करने के बाद वे सत्ता का हिस्सा नहीं बनना चाहते।

उन्होंने समाज सेवा का अपना रास्ता चुन लिया। पं.दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से समूचे देश में उनके सेवा प्रकल्प आज विश्व भर में आदर्श उदाहरण हैं। नानाजी प्रयोगधर्मी थे। वे अपने जीते जी एकात्ममानव दर्शन और सप्तक्रांति के आदर्शों को जमीन पर उतारने के लिए स्वयं समर्पित रहे।

 

JAYDEV VISHWAKARMA

पत्रकारिता में 4 साल से कार्यरत। सामाजिक सरोकार, सकारात्मक मुद्दों, राजनीतिक, स्वास्थ्य व आमजन से जुड़े विषयों पर खबर लिखने का अनुभव। Founder & Ceo - Satna Times

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