अफ्रीका के संकटग्रस्त क्षेत्र पूर्वी कांगो में वर्षों से जारी हिंसा और संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। कांगो सरकार और रवांडा समर्थित विद्रोही समूहों ने स्थायी संघर्षविराम के लिए ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे लगभग तीन दशकों से जारी सशस्त्र संघर्ष समाप्त हो गया है। इस संघर्ष को ‘अफ्रीका का विश्व युद्ध’ भी कहा जाता है, जिसमें 9 से अधिक देशों की भागीदारी रही और 50 लाख से अधिक लोग मारे गए या विस्थापित हुए। शुक्रवार को अफ्रीकी संघ और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में यह समझौता हुआ, जिसमें डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) और M23 विद्रोही समूह के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। M23 समूह रवांडा समर्थित माना जाता है और पूर्वी कांगो के नॉर्थ किवु और इतुरी प्रांतों में वर्षों से हिंसक गतिविधियों में शामिल रहा है।
कांगो ने बताया शांति की दिशा में पहला ठोस कदम
समझौते के अनुसार, सभी पक्ष तत्काल प्रभाव से शत्रुताएं समाप्त करेंगे, कब्जे वाले इलाकों से पीछे हटेंगे और शांति प्रक्रिया में भाग लेंगे। इसके साथ ही विस्थापित नागरिकों की सुरक्षित वापसी और मानवीय सहायता की आपूर्ति की व्यवस्था की जाएगी। कांगो के राष्ट्रपति फेलिक्स चिसेकेदी ने इस समझौते को ‘शांति की दिशा में पहला ठोस कदम’ बताया, वहीं रवांडा सरकार ने भी इसे सकारात्मक पहल बताया है। कांगो और रवांडा समर्थित विद्रोहियों ने शनिवार को कतर में इस ऐलान पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत विद्रोहियों ने स्थायी संघर्षविराम और एक महीने के भीतर व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने की प्रतिबद्धता जताई। यह अंतिम समझौता 18 अगस्त से पहले किया जाएगा और यह अमेरिका द्वारा जून में कांगो और रवांडा के बीच आयोजित शांति वार्ता के अनुरूप होगा।
कांगो में 70 लाख से अधिक लोग हुए विस्थापित
यह पहली बार है जब कांगो और विद्रोहियों ने पूर्वी कांगो में दो प्रमुख शहरों पर कब्जा करने के बाद सीधे शांति प्रयास किया है। पड़ोसी रवांडा के समर्थन से M23 समूह कांगो के खनिज समृद्ध पूर्वी क्षेत्र में सक्रिय 100 से अधिक सशस्त्र समूहों में सबसे प्रमुख है। इस संघर्ष में अब तक 70 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं और संयुक्त राष्ट्र ने पूर्वी कांगो में जारी संकट को ‘पृथ्वी पर सबसे लंबे, जटिल और गंभीर मानवीय संकटों में से एक’ बताया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस पहल की प्रशंसा करते हुए उम्मीद जताई कि यह समझौता क्षेत्र में लंबे समय से चल रहे संघर्ष को समाप्त करेगा। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि इस समझौते की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों पक्ष कितनी गंभीरता से इसका पालन करते हैं।
कांगो और रवांडा के बीच संघर्ष का इतिहास
कांगो और रवांडा के बीच संघर्ष का इतिहास दशकों पुराना और जटिल है। इसकी शुरुआत 1990 के दशक की शुरुआत से मानी जाती है, जब 1994 में रवांडा में तुत्सी और मध्यम हुतू जनजातियों के नरसंहार में 8 लाख से अधिक लोग मारे गए। इसके बाद लाखों हुतू शरणार्थी पूर्वी कांगो (तत्कालीन जाइरे) में चले गए, जिन पर नरसंहार में शामिल होने का आरोप भी था। 1996-1997 में रवांडा और युगांडा ने लॉरेंट कबीला के साथ मिलकर मुबुतु शासन को हटाने के लिए कांगो में हस्तक्षेप किया, जिसे पहला कांगो-रवांडा युद्ध कहा गया। इसके बाद 1998-2003 में दूसरा कांगो युद्ध हुआ, जिसमें 9 अफ्रीकी देशों और कई सशस्त्र समूहों ने भाग लिया, जिसे ‘अफ्रीका का विश्व युद्ध’ कहा गया। इसमें अनुमानित 50 लाख लोग मारे गए या विस्थापित हुए। इसके बाद 2003 में M23 विद्रोही समूह उभर कर सामने आया, जिसे रवांडा का समर्थन प्राप्त बताया जाता है। 2012 में इस समूह ने गोमा जैसे बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया और 2021 से यह समूह फिर सक्रिय हो गया। कांगो सरकार का आरोप है कि रवांडा इनका समर्थन कर रहा है, हालांकि रवांडा इन आरोपों से इनकार करता है, लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में इसके प्रमाण मिले हैं। इस समझौते के बाद उम्मीद है कि कांगो और रवांडा के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष का अंत होगा और पूर्वी कांगो में शांति स्थापित होगी।
