President Murmu vs Supreme Court: भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले पर अपनी आपत्ति जताई है। इस फैसले में राज्यपालों और राष्ट्रपति के सामने विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने की एक निश्चित समय सीमा तय की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधानसभा से पारित बिल पर राज्यपाल को तीन माह के भीतर निर्णय लेना होगा। अगर बिल दोबारा पारित किया जाता है तो राज्यपाल को एक माह के भीतर इसे मंजूर करना होगा। इसके अलावा, राष्ट्रपति को भी तीन माह के भीतर बिल पर निर्णय लेना होगा। लेकिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं और सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में कई महत्वपूर्ण सवाल किए हैं।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से किए सवाल
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से लगभग 14 सवाल पूछे हैं, जिनका संबंध संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से है। उनका कहना है कि ये अनुच्छेद राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकारों को स्पष्ट करते हैं लेकिन इनमें विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए कोई निश्चित समय सीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है। उन्होंने पूछा कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति पर विधेयकों को मंजूरी देने के मामले में न्यायपालिका का हस्तक्षेप सही है। साथ ही यह भी सवाल किया कि क्या राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार ही कार्य करना होता है या वे अपनी संवैधानिक विवेकाधिकार का उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति से सलाह ले सकता है या नहीं, जब कोई बिल राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है।
संवैधानिक प्रावधानों पर राष्ट्रपति का दृष्टिकोण
राष्ट्रपति ने यह भी सवाल किया कि क्या अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल के कार्यों पर न्यायिक समीक्षा पूरी तरह प्रतिबंधित है या नहीं। उन्होंने यह पूछा कि जब संविधान में समय सीमा और कार्य करने के तरीके निर्धारित नहीं किए गए हैं तो क्या न्यायालय समय सीमा और प्रक्रिया तय कर सकता है। इसके अलावा, राष्ट्रपति ने यह भी उठाया कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय विधेयक के बनने से पहले ही न्यायालय के समक्ष आ सकते हैं या नहीं। क्या न्यायालय विधेयक के विषय पर पहले से निर्णय दे सकता है जब वह अभी कानून नहीं बना है। इस पर भी राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टता मांगी है।
न्यायपालिका के अधिकारों और शक्तियों पर उठाए सवाल
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट की अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों के दायरे पर भी सवाल किया है। उन्होंने पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसी शक्तियां हैं कि वह संविधान या किसी अन्य कानून के विपरीत आदेश दे सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून बिना राज्यपाल की मंजूरी के कानून मान्य होंगे या नहीं। राष्ट्रपति ने यह भी प्रश्न उठाया कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास संघ और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए अनुच्छेद 131 के अलावा कोई अन्य तरीका है या नहीं। उन्होंने कहा कि संवैधानिक मामलों में सुप्रीम कोर्ट को बड़े बेंच के सामने फैसले करने चाहिए ताकि महत्वपूर्ण सवालों पर सही निर्णय हो।
