Dattatreya Hosabale: RSS की मांग है कि संविधान की मूल प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्दों की समीक्षा हो

Dattatreya Hosabale: RSS की मांग है कि संविधान की मूल प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्दों की समीक्षा हो

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Dattatreya Hosabale: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘सामाजिकवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता‘ शब्दों की समीक्षा करने की मांग की है। RSS के दूसरे नंबर के नेता दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि ये शब्द मूल संविधान में कभी नहीं थे, जिन्हें बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने तैयार किया था। होसबाले ने बताया कि ये शब्द इमरजेंसी के दौरान जोड़े गए थे, जब देश में मौलिक अधिकार निलंबित थे, संसद काम नहीं कर रही थी और न्यायपालिका भी प्रभावित थी। उन्होंने कहा कि बाद में इस मुद्दे पर चर्चा हुई, लेकिन इन शब्दों को प्रस्तावना से हटाने का कभी प्रयास नहीं किया गया।

इमरजेंसी के दौरान जोड़े गए ये शब्द, क्या ये संविधान का हिस्सा हैं?

दत्तात्रेय होसबाले ने इमरजेंसी के समय की गंभीर स्थिति को याद करते हुए बताया कि उस वक्त हजारों लोग जेल में बंद थे और जनता पर बहुत अत्याचार हुए। उन्होंने कहा कि उस समय न्यायपालिका और मीडिया की आज़ादी भी पूरी तरह से खत्म हो गई थी। होसबाले ने कहा कि प्रस्तावना अमर है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ‘सामाजिकवाद’ जैसी विचारधारा भारत के लिए स्थायी और अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि यह बात सभी को मिलकर सोचना चाहिए कि क्या ये शब्द प्रस्तावना में बने रहना चाहिए या नहीं।

Dattatreya Hosabale: RSS की मांग है कि संविधान की मूल प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्दों की समीक्षा हो

कांग्रेस पर कड़ी नसीहत, मांगा माफ़ी

इस दौरान होसबाले ने कांग्रेस पार्टी को भी निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान देश में बड़े पैमाने पर मजबूरन नसबंदी अभियान चलाया गया था। जो लोग उस वक्त इन कृत्यों में शामिल थे, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी इसके लिए माफ़ी नहीं मांगी। होसबाले ने कहा कि कांग्रेस को अपने पूर्वजों के किए हुए इन अत्याचारों के लिए देश से माफ़ी मांगनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जनता को इन चीज़ों को भूलना नहीं चाहिए और इतिहास को सही तरीके से याद रखना चाहिए।

RSS की मांग से शुरू हुआ बहस का नया दौर

दत्तात्रेय होसबाले की इस बात ने संविधान की प्रस्तावना में संशोधन को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। सवाल यह उठता है कि क्या संविधान की मूल भावना को बदलना चाहिए या नहीं। प्रस्तावना में सामाजिकता और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों को लेकर अलग-अलग विचारधाराएं हैं। कुछ लोग इसे भारत की विविधता और समरसता का प्रतीक मानते हैं, तो कुछ इसे अनुचित बदलाव समझते हैं। इस मुद्दे पर आगे क्या होगा, यह आने वाले समय में ही साफ होगा, लेकिन होसबाले की बातें इस बहस को ज़ोर-शोर से लेकर आई हैं।

Neha Mishra
Author: Neha Mishra

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