Rewa : 60 विस्तरो का बना सर्व सुविधायुक्त सिविल अस्पताल, चिकित्सको का अभाव,ओपीडी एक डाक्टर के भरोसे

रीवा/ ,राजीव द्विवेदी।।स्वाथ्य सेवाओं को बेहतर बनाने सरकार की मंशा व सिरमौर विधायक के अथक प्रयासों के परिणाम स्वरूप करोड़ों रुपए की लागत से सिरमौर में 60 विस्तरों का अस्पताल भवन बन कर तैयार हो गया । पुरानी और जर्जर अस्पताल को खाली कर उपकरणों को नए भवन में सिप्ट भी कर दिया गया । कहने को तो सर्व सुविधायुक्त अस्पताल के रूप में इसका निर्माण कराया गया है । लेकिन हकीकत यह है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से भी सिविल अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं बदतर हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं के बदतर होने की वजह
करोड़ों रुपए की लागत का अस्पताल भवन और ढेर सारे जांच उपकरण रखवा देने मात्र से मरीजों को सुविधा नही मिल जाती। उसके लिए जरूरी है विषय विशेषज्ञ चिकित्सक , पर्याप्त स्टाफ, टेक्नीशियन और रेडियो ग्राफर । किन्तु सिविल अस्पताल सिरमौर में इनका नितांत अभाव है।कहने को तो सिविल अस्पताल में 6 विषय विशेषज्ञ सहित 15 डाक्टरों के पद स्वीकृत हैं। किन्तु वास्तविकता यह है कि एक विषय विशेषज्ञ और एक नियमित चिकित्सक को छोड़कर सारे पद रिक्त हैं ।दो चिकित्सक अनुबंध पर हैं।जिसे टाइम पास जाब कहा जा सकता है।
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उनका समय भी पूरा होने वाला है। फिर दो नियमित चिकित्सक बचेंगे।जिनमे डॉ प्रशान्त शुक्ला बीएमओ का दायित्व सम्हाल रहे हैं। जाहिर है कि बीएमओ के पास इतना अधिक कार्यालयीन बोझ होता है कि वह चिकित्सकीय कार्य को ज्यादा समय नही दे सकते।
एक चिकित्सक पर है ओपीडी का पूरा बोझ
बता दें कि वैसे तो डॉ आर के ओझा वाल्य एवं शिशु रोग विशेषज्ञ हैं । किन्तु डाक्टरों की कमी की वजह से पूरी ओपीडी का बोझ अकेले उन पर है। वे न केवल शिशुओं को वल्कि महिलाओं और पुरुषों को देखते हैं। एक सफल चिकित्सक होने के नाते उनके नाम से सिरमौर, सेमरिया,डभौरा , जवा,त्यौंथर तक के मरीज आते हैं।और उनकी दवाई से शत प्रतिशत लाभान्वित भी होते हैं। यह बात अलग है कि कुछ लोगों द्वारा अपने स्वार्थ के निहितार्थ उनका विरोध करने और बदनाम करने में संलिप्त हैं । किराए के लोगों को लगाकर विरोध करते हैं।यदि आम जनता की बात करें तो भय वश नही वल्कि उनकी सेवा के कारण उन्हें चाहते हैं।आम लोगों की धारणा है कि डा ओझा के न रहने पर उन्हे बच्चों को लेकर रीवा वनारस भागना पड़ेगा। निहित स्वार्थी और विरोधियों को छोड़कर डॉ ओझा को अस्पताल समय में ओपीडी में पूरा समय देखा जा सकता है।
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करोड़ों रुपए के जांच उपकरण का रहे जंग
जो देखने की बात है वह यह है कि सिविल अस्पताल के नाम पर करोड़ों के जांच उपकरण तो शासन द्वारा भेज दिए गए हैं। किन्तु जांच करने वाले रेडियो ग्राफर और टेक्नीशियन नही है। जिससे अस्पताल में सभी जांच संभव नहीं है। मरीज के लिए जीवन रक्षक दवाइयां पर्याप्त मात्रा में नही भेजी जाती हैं। जिससे मरीज बाहर की दवाइयां लेने को वाध्य होते हैं। हाल ही में रोगी कल्याण समिति की बैठक में विधायक एवं एसडीएम के समक्ष चिकित्सकों, टेक्नीशियन और दवाइयों के अभाव का मुद्दा भी उठाया जा चुका है। स्वार्थ वश ईमानदारी से काम कर रहे किसी डाक्टर का विरोध करने की नहीं वल्कि अस्पताल में जो मूलभूत कमी है,उस ओर शासन प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराने की जरूरत है।