आधुनिक खेती में ड्रोन तकनीक की अहम भूमिका : डॉ. विष्णु ओमर

सतना,मध्यप्रदेश।। भारत देश की बढ़ती हुई जनसंख्या, आधुनिक उद्योगों की स्थापना बड़े-बड़े एक्सप्रेसवे का बनाया जाना एवं कृषि की जमीन पर बड़े-बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, भवनों का निर्माण इत्यादि के कारण खत्म होती जा रही है। जिसके कारण भविष्य में अन्न के उत्पादन में कमी का संकट उत्पन्न हो सकता है, जिसको ध्यान में रखते हुए दिन प्रति दिन देश में खेती करने के तरीके को बहुत हाईटेक करना होगा। कृषि क्षेत्र में ड्रोन प्रौद्योगिकी का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है।
किसान अभी तक जुताई बुवाई और अन्य कृषि कार्य जैसे सिंचाई, निराई, गुड़ाई, कटाई के लिए अत्याधुनिक कृषि यंत्रों जैसे सीड ड्रिल,बेलर,सेंसरयुक्त हैप्पी सीडर मल्चर मशीन, ड्रिलिंग मशीन, कंबाइन हार्वेस्टर इत्यादि का उपयोग करते आ रहे हैं। भारत में उन्नत कृषि की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए इन्हीं तकनीकों में ड्रोन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है तथा भविष्य में इसकी और भी उपयोगिता हमारे मध्यम वर्ग के किसान भाइयों द्वारा प्रयोग की जाएगी। ड्रोन के उपयोग हेतु संस्थानों को कृषि मत्रांलय सहायता राशि भी प्रदान करेगा।
अत्याधुनिक कृषि यंत्रों का मानव रहित विमान (ड्रोन) को बैटरी की मदद से रिमोट कंट्रोल द्वारा चलाया जाता है। ड्रोन को जिस भी दिशा में चाहे रिमोट की मदद से घुमाया और स्थिर भी रखा जा सकता है ड्रोन में चार पंखे लगे होते हैं जिसकी मदद से यह आसानी से उड़ सकता है। ड्रोन एक फ्लाइंग डिवाइस है जो एक ऑटो पायलट और जीपीएस निर्देशक की मदद से पूर्व निर्धारित निर्देशों के साथ उड़ान भर सकता है। ड्रोन के मुख्य भाग जैसे ड्रोन प्रोपेलर या पंखे, मोटर, बैटरी, जीपीएस सेंसर, सिगनल रिसीवर, फ्लाइंग कंट्रोलर आदि हैं। ड्रोन के चलाने के लिए कुछ ग्राउंड सेट अप जैसे कम्युनिकेशन बॉक्स, रिमोट कंट्रोलर, लैपटॉप इत्यादि की आवश्यकता होती है। ड्रोन के प्रमुख अनुप्रयोग क्षेत्र जैसे की रक्षा क्षेत्र में,कृषि क्षेत्र में, खोज एवं बचाव, मनोरंजन एवं चल चित्र, वन्य जीव आकलन, स्वास्थ्य सुरक्षा,आपदा प्रबंधन, सुरक्षा एवं कानून अनुपालन में बहुतायत से प्रयोग किया जा रहा है।
वैज्ञानिक तरीके से ड्रोन को वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे उड़ने की ऊंचाई के आधार पर ,आकार के आधार पर,वजन उठाने की दक्षता के आधार पर क्षमता एवं पहुंच के आधार पर परंतु ड्रोन को मुख्य रूप से इस की वायु गति के आधार पर दो प्रकार में वर्गीकृत किया गया है-घूमने वाले पंख, स्थिर पंख, ड्रोन में दो प्रकार का कंट्रोल सिस्टम होता है। इसमें पहला ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन तथा दूसरा रिमोट कंट्रोल स्टेशन होता है जो कि लैपटॉप के द्वारा या पर्सनल फोन के द्वारा ऑपरेट किया जाता है लैपटॉप या पर्सनल फोन के साथ ड्रोन को कनेक्ट किया जाता है जिसकी सहायता से हम ड्रोन को कब, कहां, कितनी स्पीड और कितनी ऊंचाई पर उड़ा सकते हैं। ड्रोन में एक टेलीमीटरी सिस्टम का एंटीना लगा होता है जिसके द्वारा महत्वपूर्ण जानकारी ड्रोन के कंटोल सिस्टम में चली जाती है। इसके तीन भाग होते हैं प्रपोसन सिस्टम,फ्लैट कंट्रोल यूनिट,पॉवर सिस्टम प्रपोसन सिस्टम का उपयोग प्रोपेलर ड्रोन को उड़ने में मदद करता है।
फ्लैट कंट्रोल यूनिटः इसका उपयोग ड्रोन को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है इसके अंदर बैरोमीटर, एक्सलोमीटर एवं पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड लगा होता है जो कि मोटर को पॉवर की आपूर्ति करता है ड्रोन की चक्कर लगाने की क्षमता और उड़ने की ऊँचाई अंदर लगी मदर बोर्ड और माइक्रोचिप के द्वारा कंट्रोल की जाती है। जी पी एस सिस्टम की मदद से ड्रोन की स्थिति का आकलन किया जाता है साथ ही साथ ड्रोन को लैंड कराने में भी मददगार होता है। ड्रोन को पॉवर की आपूर्ति के लिए लिथियम की बैटरी लगी होती है जिसकी क्षमता सोलह हजार यम ए यच या 22.5 वोल्ट की होती है जो कि 15 से 20 मिनट तक का फ्लाइंग टाइम आसानी से पूरा कर लेता हैं। पॉवर कनेक्ट करने के बाद जी पी यस और पॉवर लॉक सिस्टम को चेक किया जाता है कि इसमे कोई त्रुटि तो नहीं है इसके बाद टेली मीटरी सिस्टम को कनेक्ट करते है। यह सिस्टम की क्षमता लगभग 5 गीगाहर्टज से कनेक्ट कर देते है, तत्पश्चात प्रोग्रामिंग के द्वारा लोकेशन सेट करते है ड्रोन को हम दो प्रकार से उड़ा सकते है-ऑटो पायलट मोड,मैन्युअल मोड प्रमुख हैं।आधुनिक कृषि में ड्रोन का उपयोग कृषि प्रबंधन में ड्रोन के उपयोग की असीम संभावनाएं हैं जैसे अत्यधिक बारिश के कारण बाढ़से ख़राब हुई फसलों, सूखा, ओलावृष्टि के कारण फसलों में हुए नुकसान का पता लगाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
पौधों एवं फसल में लगी हुई बीमारियों आदि का पता लगाने में ड्रोन का प्रयोग बहुतायत हो रहा है। कृषि उपयोग में लाए जाने वाले उर्वरक, कीटनाशक आदि की मात्रा में कमी लाने में।ड्रोन में लगे हुए विभिन्न प्रकार के स्मार्ट सेंसर के माध्यम से पौधों में पोषक तत्वों की स्थिति, मृदा में नमी की मात्रा आदि का पता आसानी से लगाया जा सकता है।ड्रोन का प्रयोग करके किसान भाई अपनी आय को दोगुनी तक कर सकते हैं।ऊँचाई वाली फसलों जैसे गन्ना,ज्वार,बाजरा, आदि पर कीटनाशकों का छिड़काव आसानी से ड्रोन की मदद से किया जा सकता है।ड्रोन में लगे उच्च क्षमता वाले मल्टी स्पेक्ट्रम कैमरों की मदद से फसलों की इमेज आसानी से ली जा सकती है।ड्रोन का उपयोग करके फसलों का हवाई सर्वेक्षण आसानी से किया जा सकता है। ड्रोन के इस्तेमाल से देश के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगार युवाओं के लिए नौकरियां पैदा की जा सकती हैं।ड्रोन की मदद से माइक्रो और मैक्रो (न्यूट्रिएंट) उर्वरक का फसलों पर छिडकाव आसानी से किया जा सकता है ।
ड्रोन की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए डॉ.ओमर ने बताया कि ड्रोन की मदद से कठिन से कठिन कार्य आसानी से मजदूरों की कमी और निश्चित समय सीमा पर सुरक्षित तरीके से किया जा सकता है यह तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। ड्रोन विमान संचालन के कुछ नियम हैं जैसे भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने ड्रोन के अनुप्रयोग हेतु मानक संचालन प्रक्रिया के नियम एवं दिशा निर्देश जारी किया है जो कि ड्रोन संचालन के लिए अति आवश्यक है। ड्रोन को उड़ाने हेतु एस.ओ. पी. में शामिल ड्रोन का पंजीकरण, उड़ान की अनुमति, वजन, भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में उड़ाने का प्रतिबंध, सुरक्षा बीमा, मौसम की स्थिति, हवाई उड़ान का क्षेत्र आदि शामिल है हालांकि ड्रोन को 120 मीटर से कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।ड्रोन उपयोग में कुछ बाधाएं भी हैं। अत्यधिक मूल्य होने के कारण छोटे एवं मध्यम वर्ग के किसानो को ड्रोन को खरीदने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है जिससे यह वर्ग इसके उपयोग से वंचित हो जाते हैं।
किसानों को वैज्ञानिक प्रशिक्षण या ड्रोन के बारे में तकनीकी जानकारी ना होने से भी ड्रोन के संचालन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।स्थानीय बाजारों में ड्रोन के सर्विस सेंटर ना होने के कारण तकनीकी खराबी आ जाने के कारण इसे दूर दराज के शहरों में ले जाकर ठीक करने भी कठिनाई एवं समय की भी बर्बादी होती है। ड्रोन संचालन के लिए परमिशन की आवश्यकता का होना। कुल मिलाकर ड्रोन तकनीकी आज के लिए वरदान है।