Parle-G, ब्रिटिश काल के इस बिस्किट के शून्य से शिखर तक पहुंचने की कहानी सुनकर हैरान रह जाएंगे आप!

Parle – g :वैसे तो आज मार्केट में कई नामचीन ब्रांड के बिस्किट मौजूद हैं लेकिन एक आज हम जिस ब्रांड के बिस्किट की बात करने जा रहे हैं, वो ना सिर्फ एक बिस्किट है बल्कि हमारे-तुम्हारे या 90 के दशक तक की पीढ़ी वाले लोगों की यादें और अहसास भी जुड़ी हैं। क्योंकि ये बिस्किट इन लोगों के बचपन का फेवरेट बिस्किट हुआ करता था, जिसका नाम है-Parle-G।

आज Parle-G बनाने वाली कंपनी के पास सिर्फ Parle बिस्किट नहीं बल्कि कई और प्रोडक्ट भी हैं, जो लोगों के बीच में आज भी बहुत फेमस है। इनमें प्रमुख हैं मोनाको, मैंगो बाईट, पोपिन और किस्मी चॉकलेट। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि Parle की शुरुआत भारत में चल रहे स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर हुई थी।
उन दिनों Parle में सिर्फ 12 कर्मचारी हुआ थे और ये कर्मचारी भी इसके संस्थापक मोहनलाल दयाल चौहान के फैमिली मेंबर ही थे। आईए आज अंग्रेजों के जमाने वाले इस बिस्किट के शून्य से शिखर तक पहुंचने की कहानी जानते हैं।
कौन हैं Parle के संस्थापक?
Parle कंपनी की शुरुआत मोहनलाल दयाल चौहान ने की थी। दयाल गुजरात के वलसाड के रहने वाले थे और Parle की शुरुआत से पहले उनका सिल्क का काम था। इसके बाद उन्होंने एक बेकरी की शुरुआत की, जहां वो ब्रेड, बन्स, रस्क और नानखटाई जैसे प्रोडक्ट बनाते थे।
ऐसे नाम पड़ा Parle
उस समय देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन चल रहा था। महात्मा गांधी जी ने देशवासियों से विदेशी सामान का बहिष्कार करने की अपील की थी। मोहनलाल दयाल भी स्वदेशी आंदोलन से बहुत प्रभावित थे। वो चाहते थे कि वे एक ऐसा बिस्किट बनाए, जो देश के आम लोगों के लिए हो। तब दयाल ने जर्मनी की यात्रा की और वहां से वे बिस्किट आदि प्रोडक्ट बनाने का एडवांस्ड ज्ञान और 60 हजार कीमत के इक्विपमेंट लेकर भारत लौटे।
उसके बाद उन्होंने 1929 में मुंबई के विले पार्ले में एक पुरानी फैक्ट्री खरीदार उसे डेवलप किया। वीले पार्ले में होने के कारण उन्होंने पहले इसका नाम हाउस ऑफ पार्ले रखा। शुरुआत में इनके साथ सिर्फ 12 कर्मचारी थे। वे सभी 12 कर्मचारी दयाल के फैमिली मेंबर ही थे।
पहला प्रोडक्ट बिस्किट नहीं कैंडी बनाया था
1929 में शुरू होने वाली House of Parle पहले ऑरेंज कैंडी बनाती थी। फिर 1938 में पहली बार सामने आया Parle Glucose बिस्किट। यह बिस्किट उस समय सस्ता था, इसलिए इस बिस्किट ने बहुत ही जल्दी बाज़ार में अपनी पकड़ बना ली।
इसके बाद 1941-42 में मोनाको, 1956 में चीज़ी स्नैक्स चिज़लिंग्स, 1963 में किस्मी चॉकलेट और 1966 में पोपिंस बनाया। 1960 के दशक में एक दुसरो कंपनी ब्रिटानिया की एंट्री हो गयी, जिससे इन्हें कड़ी टक्कर मिलने लगी।
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1981 के बाद कंपनी ने Parle Glucose को Parle G कर दिया। विज्ञापनों में G माने Genius का इस्तेमाल किया गया, लेकिन असल में G का मतलब Glucose था।
2013 में Parle ने 5 हजार करोड़ के बिस्किट बेचे थे वहीं 2018 से 2020 के दौरान 8 हजार करोड़ के Parle G बिस्किट बिके थे। आज Parle-G की पूरे देश में 130 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं, वहीं आज Parle-G हर महीने 1 अरब से ज्यादा पैकेट बिस्किट का उत्पादन करती है।