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मनरेगा में घटती मजदूरी क्यों? बजट की मार या कुछ और? आंकड़ों से समझिए पूरी तस्वीर

नई दिल्ली: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत पिछले साल के मुकाबले इस साल काम कम हुआ है। साल 2024-25 में इस योजना के तहत 288 करोड़ से ज्यादा पर्सन डेज काम हुआ है। चौंकाने वाली बात यह है कि साल 2023-24 में इस योजना के तहत 312 करोड़ पर्सन डेज काम हुआ था। हालांकि, 2024-25 का आंकड़ा कुछ हद तक बढ़ सकता है, क्यों उसमें अभी 31 मार्च तक के आंकड़े जोड़े जाने बाकी है। यह काम अप्रैल के अंत किया जाएगा।

मनरेगा में घटती मजदूरी क्यों? बजट की मार या कुछ और? आंकड़ों से समझिए पूरी तस्वीर
मनरेगा में घटती मजदूरी क्यों? बजट की मार या कुछ और? आंकड़ों से समझिए पूरी तस्वीर

एक्सपर्ट्स का कहना है कि बजट में कमी के कारण भी काम की मांग कम हुई है। हालांकि, सरकार का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में हालात सुधर रहे हैं। मनरेगा योजना में पिछले 2 सालों में 2019-20 के मुकाबले ज्यादा काम हुआ है। 2019-20 में इस योजना के तहत 265 करोड़ मानव दिवस काम हुआ था। यह कोविड महामारी से पहले का साल था।

महामारी में बढ़ी थी वर्कर्स की संख्या

महामारी के कारण 2020-21 में आर्थिक गतिविधियां रुक गईं थीं। देशव्यापी लॉकडाउन के कारण ग्रामीण लोग मनरेगा के कार्यस्थलों पर उमड़ पड़े थे। काम की मांग बहुत बढ़ गई थी। उस साल लगभग 389 करोड़ मानव दिवस का काम हुआ था, जो अब तक का सबसे अधिक है। प्रवासी मजदूरों का अपने गृह राज्यों में लौटना भी योजना के तहत काम की अधिक मांग का एक कारण था।

पिछले साल की तुलना में आई कमी

अब काम की मांग कम हो गई है, लेकिन यह अभी भी महामारी से पहले के सामान्य स्तर तक नहीं पहुंची है। काम की अधिक मांग को ग्रामीण संकट का संकेत माना जा रहा है। 2024-25 में 2023-24 की तुलना में काम में कमी आई है। सरकार इसे ग्रामीण संकट में और सुधार के रूप में देख रही है। सरकार ने हाल के महीनों में कई बार यह दावा भी किया है।

क्या बजट की कमी है बड़ा कारण?

योजना को लेकर काम करने वाले एक्सपर्ट्स का तर्क है कि बजट में कमी के कारण काम की मांग कम हुई है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पिछले 2 सालों में मनरेगा का बजट लगभग 86 हजार से 89 हजार करोड़ रुपये रखा है। योजना डिमांड आधारित है। सरकार शुरुआती बजटीय आवंटन से ऊपर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए पैसे देने के लिए बाध्य है।

इस साल कम पड़ेंगे 86 हजार करोड़!

तर्क यह दिया जाता है कि शुरुआती घोषणा में कम बजट होने से राज्य सरकारें और जिला अधिकारी संकेत लेते हैं। वे देरी करके मांग को कम करते हैं। यही कारण है कि गैर-सरकारी विशेषज्ञ ‘संशोधित अनुमान’ की प्रतीक्षा किए बिना बजट में अधिक आवंटन की वकालत करते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2025-26 में, 86 हजार करोड़ रुपये का आवंटन बहुत कम होगा। क्योंकि मंत्रालय के पास 2024-25 से लगभग 29 हजार करोड़ रुपये का घाटा है। इसका एक छोटा हिस्सा राज्यों की देनदारी हो सकता है।

मनरेगा में इतने दिन का रोजगार पक्का

बता दें कि मनरेगा एक अहम योजना योजना है। यह ग्रामीण लोगों को रोजगार देती है। इस योजना के तहत, ग्रामीण लोगों को साल में 100 दिन का रोजगार मिलता है। योजना का संचालन ग्रामीण विकास मंत्रालय करता है।

सतना टाइम्स न्यूज डेस्क

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