उज्जैन,मध्यप्रदेश।। महाकाल लोक (Mahakal Lok Corridor) के लोकार्पण के साथ ही उज्जैन एक बार फिर चर्चाओं में है। उज्जैन (Ujjain) के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है और इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। महाकाल की ये नगरी सदैव से श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र रही है। क्षिप्रा नदी के किनारे बसा ये शहर एक समय में राजा विक्रमादित्य की राजधानी भी था। हर 12 साल में यहा सिंहस्थ महाकुंभ मेला (Mahakumbh mela) लगता है, जिसमें देश विदेश से श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों (Mahakaleshwar Jyotirling) में से एक है। पुराणों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। महाकवि कालिदास की रचनाओं में भी इसका उल्लेख है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यधिक महत्ता है। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। पौराणिक कथा अनुसार उज्जयिनी में चंद्रसेन नाम का राजा शासन करता था।
शिव पुराण की कथा बताती है कि वो भगवान शिव का अनन्य भक्त था और उनके एक गण मणिभद्र से उसकी गहरी मित्रता थी। एक दिन मणिभद्र ने राजा को एक अमूल्य चिंतामणि प्रदान की। उसे धारण करने से चंद्रसेन की यश, कीर्ति और प्रभुत्व बढ़ने लगा। इसके बाद कई अन्य राजा उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा करने लगे। लेकिन राजा चंद्रसेन ने वो मणि किसी को नहीं दी, इससे कुपित होकर अन्य राजाओं ने उसपर हमला कर दिया।
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इसके बाद शिवभक्त चंद्रसेन एक भगवान महाकाल की शरण में जाकर भक्ति में ध्यानमग्न हो गया। जब वो समाधि में था तो वहां एक गोपी अपने बालक के साथ दर्शन के लिए आई। राजा को समाधि में लीन देख पांच वर्षीय बालक भी पूजा करने की ओर आकृष्ट हुआ। वो कहीं से एक पत्थर ले आया और अपने घर के एकांत स्थल पर उसे शिवलिंग मानकर उसकी पूजा करने लगा। कुछ समय बाद उसकी माता ने उसे भोजन के लिए पुकारा, लेकिन वो नहीं आया। माता स्वयं उसे बुलाने आई लेकिन बालक ने तब भी उसकी आवाज नहीं सुनी। इससे क्रुद्ध माता उसे पीटने लगी और सारी पूजन सामग्री फेंक दी। इससे बालक बेहद दुखी हुआ। तभी वहां चमत्कार हुआ और भगवान शिव की कृपा से वहां एक मंदिर बन गया। मंदिर के मध्य भाग में दिव्य शिवलिंग स्थापित था और बालक द्वारा सज्जित समस्त पूजन सामग्री वहां रखी थी। इस तरह महाकाल मंदिर की उत्पत्ति की पौराणिक कथा कही जाती है।
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इतिहास की बात करे तो मान्यता है कि महाकाल मंदिर (Mahakal Mandir) का निर्माण द्वापर युग से भी पहले हुआ था। कहा जाता है कि महाकाल मंदिर पर कई बार आक्रमण हुआ। सन 1235 में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने महाकालेश्वर मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद महाकाल ज्योतिर्लिंग को आक्रांताओं से सुरक्षित रखने लिए करीब 550 वर्षों तक पास ही के एक कुएं में छिपाकर रखा गया। 1732 मराठा शूरवीर श्रीमंत राणोजी राव सिंधिया ने मुगलों को पराजिय किया और अपना शासन स्थापित किया।
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इसके बाद उन्होने श्री बाबा महाकाल ज्योतिर्लिंग को कोटि तीर्थ कुंड से निकालवाया और फिर से महाकाल मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में महाकाल ज्योतिर्लिंग को दोबारा स्थापित किया गया। समय के साथ इसका विस्तार होता गया और आज ये एक विहंगम रूप ले चुका है।