people here are forced to live like refugees

  • सतना जिले का एक ऐसा गांव जो सरकारी दस्तावेजों में नही है दर्ज, शरणार्थी सा जीवन जीने को मजबूर यहाँ के लोग

    Satna News :सतना,मध्यप्रदेश।। मध्य प्रदेश के सतना जिले के खोहर गांव के बसीदें अपने ही गांव में शरणार्थी सा जीवन जीने को मजबूर हैं। ना तो इनके गरीबी रेखा के कार्ड बनते हैं और ना ही सरकार द्वारा चलाई जाने वाली जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ लाभ ले पाते। सतना टाइम्स (Satnatimes.in) की टीम खोहर गांव पहुंचकर बकिया बराज के पीड़ित किसानों की समस्याएं जानने का प्रयास किया है।

    सतना जिले का एक ऐसा गांव जो सरकारी दस्तावेजों में नही है दर्ज, शरणार्थी सा जीवन जीने को मजबूर यहाँ के लोग
    Photo credit by satna times

    दरअसल टॉस हाइड्रल परियोजना बकिया बराज के लिए वर्ष 1990- 91 में रामपुर बघेलान(rampur baghelan) क्षेत्र के 44 गांव के करीब 5000 किसानो को नाम मात्र का मुआवजा देकर सोन उगलने वाली जमीन अधिग्रहण कर ली थी।सतना जिला मुख्यालय से करीब 38 किमी दूर बसा खोहर गांव(khohar village satna) उन 44 गांवों में से एक है जहां के ग्रामीणों ने सरकार के एक आह्वान पर क्षेत्रहित में अपनी जमीनें बकिया बराज के निर्माण के लिए दे दी थी।



    लेकिन जब परियोजना ने आकार लिया तो पाया गया कि 280 हजार मीटर की उचाई पर्यात है। बाथ की उचाई 2 मीटर घट जाने से लगभग 2 हजार किसानों की अधिग्रहित जमीन का एक बड़ा हिस्सा खूब क्षेत्र से बाहर आ गया। हालंकि जमीनों को अधिग्रहित कराने वाली सरकार ने डूब क्षेत्र से बाहर हुई जमीन को लौटाने के आदेश तो जारी किए लेकिन करीब 34 वर्षों के बाद भी किसानों की जमीन वापसी की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।

    यूं तो प्रशासनिक नुमाइंदों की उदासीनता का शिकार बकिया, किचवरिया, इटौर, गोलहटा, बंधौरा, अतरहार, पिपराछा, लौलाछ, गढ़वा कला, गढ़वा खुर्द, खोहर, रेंगुटा, गजिगवा बकिया बैलो, कंदवा घटबेलवा तथा मझियार समेत 44 गांवों के तकरीबन 2 हजार किसान है।



    लेकिन खोहर वामियों की पीड़ा इन सबसे अलग है। दूसरे डूब प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों को प्रशासन कम से कम किसान और यहां के वाशिंदा मानते हुए उन्हें सरकारी हितग्राही योजनाओं का लाभ तो देता है, लेकिन खोहर गांव के ग्रामीणों को यह भी नसीब नहीं है। कारण कि खोहर अब तक सरकारी दस्तावेजों में राजस्व गांव के तौर पर ही दर्ज नहीं है।

    प्रशासनिक इच्छाशकि इतनी लचर है कि सरकार के तमाम दिशा निर्देशों के बावजूद खोहर राजस्व ग्राम दस्तावेजों में दर्ज नहीं हुआ है। नतीजतन किसान हर प्रकार के सरकारी लाभ से वंचित हैं। न ती खोहर गांव के किसानों को सरकार किसान सम्मान निधि हासिल होती और न ही उन्हें समितियों से खाद-बीज मिलती। ऐसे में यहां का किसान प्रशासनिक प्रताड़ना का शिकार बना हुआ है।

    खोहर गांव के बेटा सिंह ने बताया की हम हाड़-तोड़ मेहनत कर खेतों में सभी किसानों की तरह अनाज उगाते हैं। लेकिन समितियां न तो उपज का पंजीयन करती है और न ही खरीदी करती है, नतीजतन कई बार हमें अनाज कारोबारियों को औने पौने दाम में उपज बेचने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

    हेमराज सिंह ने बताया कि ना तो हमारे गरीबी रेखा के कार्ड बनते हैं और न ही सरकार द्वारा चलाई जाने बाली हितग्राही योजनाओं का लाभ मिलता है। ऐसा लगता है कि जैसे हमारा गांव भारत में नहीं बल्कि दूसरे देश में बसा हुआ है। ऐसी ही पीड़ा गढ़वा खुर्द पंचायत के खोहर गांव के सभी रहवासियों की है जो बीते कई सालों से प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा का दंश भोग रहे हैं।

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