Birthday special rajendra shukla

  • जन्मदिन विशेष : डिप्टी CM राजेंद्र शुक्ल का सादगी, प्रेम और सरलता से सम्पन्न असाधारण व्यक्तित्व

    Birthday Special Deputy CM Rajendra Shukla: मध्यप्रदेश के राजनीतिक क्षितिज में दैदीप्यमान वह प्रकाशपुंज हैं जो उज्जवल भविष्य, चहूँओर विकास को प्रदर्शित करता है। उनका नाम, विकास का भविष्योन्मुखी सोच का परिचायक है। उनकी दूरदर्शी सोच और उस सोच को धरातल में लाने की दृढ़ इच्छाशक्ति और जुझारू व्यक्तित्व उन्हंो विशेष बनाता है। जन-जन के विकास के लिए बिना-रुके, बिना- थके सतत प्रयासरत श्री शुक्ल की विनम्रता उनके व्यक्तित्व को असाधारण बनाती है। शिखर पर पहुँचने के बाद भी विनम्र बने रहना सबसे बड़ा गुण है।

    जहां तक राजेन्द्र शुक्ल जी का सवाल है, उन्हें विनम्रता का पर्याय कहना किसी भी तरह की अतिशयोक्ति नहीं होगी।निःस्वार्थ सेवा, अथक परिश्रम, गहन समर्पण, अटूट निष्ठा, जरूरतमंदों की सहायता के लिए सदा तत्परता और लक्ष्य की ओर निरंतर यात्रा ने उन्हें भीड़ में अलग पहचान दिलाई है। वे नवोन्मेषी विचारक हैं। उनके अंतरात्मा में विचारों की निरंतरता हमेशा गतिशील रहती है। उनके नवाचार की ऊष्मा हर पल नए और विशिष्ट विचारों का जन्म देती रहती है। चुनौतियों और लक्ष्यों से लड़ने की दृढ़ शक्ति उनमें निहित है। सौंपे गए दायित्वों को कुशलता से निभाने की क्षमता का आकलन कर विरोधी भी उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रहते हैं। कैसी भी बाधाएँ समस्याएँ आ जायें, बिना समय व्यर्थ किए, बिना विचलित हुए वे सदैव समाधान के लिए प्रयास करते हैं। उनका मानना है कि “अगर आप समाधान का हिस्सा नहीं है, तो आप ख़ुद एक समस्या हैं।”

    वे मानते हैं कि “श्रमेण सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः” अर्थात श्रम से ही कार्य सिद्ध होते हैं, मात्र इच्छाओं से नहीं। लक्ष्य प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करना सोच से भी महत्वपूर्ण है। सतत प्रयास से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। यहाँ रश्मिरथी का यह उद्धरण प्रासंगिक है:

    “खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़,
    मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है…”

    राजेन्द्र शुक्ल जी का जीवन संघर्ष और सेवा का जीवंत उदाहरण है, जो हमें प्रेरणा देता है कि कैसे कठिनाईयों और संघर्षों के बीच भी एक व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और समाज के लिए आदर्श बन सकता है। श्री राजेन्द्र शुक्ल के व्यक्तित्व की उदारता, सहृदयता, संवेदनशीलता और सज्जनता के अद्भुत संयोजन में ऐसा व्यक्तित्व निर्मित हुआ है, जिसने सरल, सहज, उदार, स्नेही व्यक्तित्व की नई इबारत लिखी है। विशाल व्यक्तित्व के धनी का सशक्त पहलू व्यापक विचारधारा है। उनकी चिंतन क्षमता ने उनके व्यक्तित्व में व्यवहारिकता और अध्यात्मिकता का अनूठा संयोजन किया है। उनकी सफलताओं का आधार उनके करिश्माई व्यक्तित्व और अनूठी सोच है। विचारों की व्यापकता का रूचि-नीति में भी परिलक्षित होती है। उनका यहीं सेवा-भाव जरूरतमंद की मदद करने में दिखता है।

    श्री शुक्ल में सेवा-संकल्प का समर्पित भाव, चुनौतियों की जिद और जूनून के साथ सामना करने का जज्बा उनके व्यक्तित्व के ऐसे पहलू हैं, जिन्होंने राजनीति को सेवा नीति में बदल दिया है। एक योगी की तरह हर आम-खास की बात, समस्या सुनना, मनन करना और जरूरतमंदों की सेवाभाव से मदद करना उनकी प्राथमिकता में रहता है। उनका यह ऐसा गुण है, जिसमें आम “जन” के “मन” से उनका एक गहरा और आत्मीयता पूर्ण रिश्ता बन जाता है।

    श्री राजेन्द्र शुक्ल को कभी अपनी छवि निर्माण के लिए प्रयास नहीं करने पड़े। उनके कर्मठ व्यक्तित्व और सरल विनम्र स्वभाव ने उनकी छवि को इतना पुख्ता कर दिया है कि उसे धुंधला कर पाना संभव नहीं है। श्री शुक्ल के व्यक्तित्व का प्रभावी पहलू उनकी विशिष्ट संवाद क्षमता है। वे सीधे और सहज भाव से श्रोताओं के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित कर उनकी समस्याओं का निदान करते हैं। सीधे संवाद की विशिष्ट क्षमता, विचारों की व्यापकता व्यवहार की सहजता, व्यक्तित्व की विशालता का अद्भुत संयोजन का ही नाम श्री राजेन्द्र शुक्ल हैं।

    राजेंद्र शुक्ल असाधारण व्यक्ति वाले आम आदमी

    श्री राजेन्द्र शुक्ल असाधारण व्यक्ति वाले आम आदमी है। वे दिखते साधारण है लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण रूप से विशाल और प्रतिभा संपन्न हैं। मानवीय संवेदनाओं, अनुभूतियों से उदार गुणों से भरा दिल है जो हर पल पीड़ित मानवता की सेवा के लिए धड़कता है। वे कार्यों पर जितनी चौकस निगाह रखते हैं, उतनी उनको चिंता है कि दरवाजे पर आए गंभीर रोग से पीड़ित और हर दुखियारे की मदद कर उसका दुःख-दर्द दूर किया जाए।सहजता, सरलता, सौम्यता, शुचिता के साथ ही तत्परता और त्वरित गति से जन-समस्याओं का निराकरण; ये वे गुण होते हैं जो राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति को एक ऊँचे मुकाम तक पहुँचाते हैं। विन्ध्य की धरती पर जन्में श्री राजेन्द्र शुक्ल के जीवन और उनके व्यक्तित्व-कृतित्व में ऐसे ही गुणों का समावेश है, जो सार्वजनिक जीवन में और राजनीति में काम करने की विशेषताएँ होती है, राजनीति उनके लिए सेवा का भाव रही है।

    मानव-सेवा के लक्ष्य शिरोधार्य

    श्री शुक्ल ने पिता समाजसेवी स्व. श्री भैयालाल शुक्ल के गुणों और संस्कारों का अनुसरण करते हुए स्वयं को ढाला। धीर-गंभीर ऋषि-मुनि मानव सेवा के लक्ष्य में एक तपस्वी की तरह लीन रहना उनका लक्ष्य है। उनकी सेवा भावना की तपस्या को कभी किसी पद का लालच भंग करने का साहसी ही नहीं जुटा पाया है। मानव-सेवा के लक्ष्य को शिरोधार्य कर अनवरत प्रयासरत हैं।

    कर्मयोगी की साधना

    श्री राजेंद्र शुक्ल का जन्म और प्रारंभिक शिक्षा रीवा, मध्यप्रदेश में हुई। रीवा में 3 अगस्त 1964 को जन्में श्री राजेन्द्र शुक्ल ने युवा अवस्था में ही राजनीति के प्रति अपनी रुचि बता दी थी, जब वे वर्ष 1986 में रीवा इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। वर्ष 1992 में युवा सम्मेलन का आयोजन करने में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। वे लायंस क्लब रीवा के लंबे समय से सदस्य रहे हैं। भाजपा मध्यप्रदेश की कार्य समिति के सदस्य और मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल के डायरेक्टर भी रहे हैं। श्री शुक्ल ने वर्ष 1998 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण की और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य बनाए गए। व्यवसाय कृषि, तैराकी के शौकीन पहली बार वर्ष 2003 में विधानसभा के लिए चुने गए और राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आवास एवं पर्यावरण रहे। उसके बाद उन्होंने निरंतर अपनी विजय को बरकरार रखा। योग्य, कुशल प्रबंधन और प्रशासनिक क्षमता के धनी श्री शुक्ल को जब भी जो जिम्मेदारी सौंपी गई, उन्होंने प्रबंधन कौशल का बेहतर प्रदर्शन कर उसे परिणाममूलक बनाया। अपने बेहतर प्रबंधन से राजनेताओं के सामने श्री शुक्ल ने अपनी पहचान को नए-नए आयाम दिए। विवादों से दूर रहकर बिना शोरगुल के काम करते रहने की नीति पर वे चले। राजनीति को राष्ट्र हित में रखते हुए वे राष्ट्रवादी चिंतन के साथ अपने कदम को आगे बढ़ाना चाहते हैं। श्री शुक्ल को तीन कार्यकाल में मंत्रीमंडल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली। वे मंत्री पद की कसौटी पर भी सदैव खरे उतरे। नेतृत्व के प्रति निष्ठा और राज्य सरकार के लक्ष्यों और कार्यक्रमों को पूरा करने की प्रतिबद्धता श्री शुक्ल की विशेषता है। उनकी कर्मठता और लक्ष्य के प्रति संकल्पबद्धता को शब्दों के रूप में पिरोने के लिए बशीर बद्र की यह ग़ज़ल प्रासंगिक है-

    जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है,
    आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा …”

    श्री शुक्ल वर्ष 2008 में तेरहवीं विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए और राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) वन, जैव विविधता तथा जैव प्रौद्योगिकी, खनिज साधन, विधि और विधायी कार्य और ऊर्जा मंत्री रहे। वर्ष 2009 में ऊर्जा एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का प्रभार संभालने के पश्चात्, श्री शुक्ल ने गुजरात की ग्राम ज्योति योजना से प्रेरित होकर मध्यप्रदेश में भी अटल ज्योति योजना का शुभारंभ किया। इस योजना के माध्यम से प्रदेश में 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति के लक्ष्य को हासिल किया गया। ऊर्जा मंत्री के रूप में बिजली संकट जूझते हुए मध्यप्रदेश को रोशन करने की उन्हें चुनौती मिली। राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप उन्होंने प्रदेश को बिजली संकट से उबारा। आज मध्यप्रदेश सरप्लस बिजली राज्य के रूप में खड़ा है। वर्ष 2012 में उन्हें मंत्री ऊर्जा, खनिज साधन बनाया गया। वर्ष 2013 में चौदहवीं विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए और मंत्री, ऊर्जा, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा, खनिज साधन, जनसम्पर्क, वाणिज्य, उद्योग और रोजगार, प्रवासी भारतीय विभाग का मंत्री बनाया गया। श्री शुक्ल ने जनसंपर्क मंत्री के रूप में भी एक अलग पहचान स्थापित की। पत्रकारों के हित में अनेक योजनाओं को अमली जामा पहनाया। श्री शुक्ल ने उद्योग तथा खनिज विभाग के दायित्व को बखूबी निभाया। वे प्रदेश में औद्योगिक क्रांति का संकल्प लेकर राज्य में उद्योगों का जाल बिछाने का पर कार्य किया। खनिज आधारित उद्योगों की स्थापना तथा राजस्व वृद्धि करने में सफलता पायी। वर्ष 2018 में चौथी बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। श्री शुक्ल ने 26 अगस्त 2023 को कैबिनेट मंत्री के पद की शपथ ग्रहण की। मंत्री लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं जनसंपर्क विभाग रहे। वर्ष 2023 में पांचवीं बार विधान सभा सदस्य निर्वाचित हुए और 13 दिसम्बर 2023 को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वर्तमान में प्रदेश के हर क्षेत्र हर नागरिक तक सुलभ और उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच स्थापित करने के लिए वे कार्यरत हैं।स्वास्थ्य क्षेत्र में अधोसंरचना विस्तार, चिकित्सकीय और सहायक चिकित्सकीय मैनपॉवर और उपकरणों की उपलब्धता के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उनका लक्ष्य मध्यप्रदेश को स्वास्थ्य के विभिन्न मानकों पर देश में शीर्ष पर ले जाना है। यह लक्ष्य बड़ा चुनौतीपूर्ण हैं पर कहते हैं न…
    “कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता,
    एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”
    निःसंदेह कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था ज़िम्मेदार और कुशल हाथों में है। इसके सुखद परिणाम शीघ्र ही परिलक्षित होंगे।

    विंध्य क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए हर क्षेत्र में किए प्रयास

    रात-दिन विन्ध्य के विकास का सपना देखने वाले श्री राजेन्द्र शुक्ल ने अपनी जन्म-भूमि विन्ध्य के विकास के प्रति अपने दायित्व को बखूबी निभाया। उन्होंने विन्ध्य क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा पर्यटन विकास को अपनी प्राथमिकता में रखा है। अपने क्षेत्र के विकास के लिए उनके ड्रीम प्रोजेक्ट्स मुकुन्दपुर व्हाईट टाईगर सफारी, चाकघाट से इलाहाबाद और हनुमना से बनारस फोर-लेन का निर्माण, हवाई पट्टी अथवा गुढ़ में विश्व का सबसे बड़े 750 मेगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना हो। श्री शुक्ल ने रीवा के चौतरफा विकास में विशेष रुचि ली है। इसी के चलते रीवा विकास शहर के रूप में उभरा है। रीवा सहित पूरे विन्ध्य को यातायात और संचार के साधन मिलने के लिए उन्होंने कायाकल्प करने का संकल्प लिया है। रीवा बायपास न होने से यातायात अव्यवस्था से दुर्घटनाएँ होती थीं। चोरहटा से रतहरा बायपास बनवाकर रीवा में यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ किया। श्री शुक्ल ने अपने समाजसेवी पिता स्व. श्री भैयालाल शुक्ल की प्रेरणा से रीवा में स्थित लक्ष्मण बाग गौ-शाला को आदर्श गौशाला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी तमाम व्यस्तता के बाद भी श्री शुक्ल लक्ष्मण बाग गौ-शाला में जाकर गायों की सेवा कर अपने पिता स्व. श्री भैयालाल शुक्ल जी को सच्ची श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं।

    उनके नेतृत्व और प्रयासों से रीवा और विन्ध्य क्षेत्र को नई पहचान मिली है और वे निरंतर अपने क्षेत्र के विकास के लिए कार्यरत हैं। नवकरणीय ऊर्जा मंत्री रहते हुए, उन्होंने रीवा में एशिया के सबसे बड़े सोलर प्लांट की स्थापना की और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकार्पित किया। श्री शुक्ल ने व्हाइट टाइगर को विन्ध्य क्षेत्र के मुकुन्दपुर वन क्षेत्र में वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह क्षेत्र 46 वर्षों से व्हाइट टाइगर से वंचित था, जो कि विन्ध्य क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण राजनैतिक और भावनात्मक मुद्दा रहा है। वर्ष 2014 में स्थापित इस जू में आज भी हजारों देशी-विदेशी पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है।

    श्री शुक्ल रीवा सहित विंध्य क्षेत्र के विकास के कार्यों में सदैव सक्रिय रहे हैं। रीवा में एयरपोर्ट सुविधा के लिए उनके प्रयास फलीभूत हुए और विध्य की देश के अन्य हिस्सों से कनेक्टिविटी बेहतर हुई है। वे संभागीय मुख्यालय को महानगर बनाने की दिशा में भी सक्रिय हैं। उनके मंत्रिमंडल कार्यकालों के दौरान, वाणसागर के पानी से रीवा और विंध्य क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा में सतत वृद्धि हुई है। श्री शुक्ल के प्रयासों से रीवा में तालाबों और जल संरचनाओं का सौंदर्यीकरण और पुनरुद्धार हुआ है। उन्होंने सड़क, पुल, रिंग रोड, मठ, मंदिर, तीर्थ स्थलों का जीर्णोद्धार भी करवाया है। उन्होंने खाली पड़ी एवं अनुपयोगी जमीनों में पार्क और बागों का निर्माण करवाया है। रीवा विधानसभा के 41 गांवो को डी.पी.आई.पी. से जोड़कर करीब 42 स्वसहायता समूह के माध्यम से 41 गांवो में मछली पालन, सब्जी उत्पादन, दुग्ध डेयरी सहित अन्य रोजगार हेतु करीब 20 करोड़ से अधिक की राशि ग्रामीणों को उपलब्ध कराई गयी। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में तेज गति से विकास हुआ।
    पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी विशेष अभिरुचि रही है।

    जगह-जगह वृक्षारोपण और ईको-पार्क, नगर वन तथा एपीएस वन का निर्माण करवाया है। युवाओं के खेलकूद के लिए उन्होंने विश्व स्तरीय मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाई और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण कराया। बीहर नदी में रिवर फ्रंट का निर्माण भी उनके प्रयासों का परिणाम है। श्री शुक्ल के प्रयासों से संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। माखनलाल विश्वविद्यालय के रीवा परिसर की स्वीकृति, भवन निर्माण एवं संचालन के कार्य को मूर्तरूप देने का कार्य किया। रीवा विधानसभा में करीब 50 से अधिक विद्यालय भवन विहीन थे विद्यालय पेड़ो के नीचे संचालित थे। अभियान चला कर भवन निर्माण करवाया। 50 वर्ष से उन्नयन की बाट जोह रहे 5वीं से 8वीं करीब 25 विद्यालयों का उन्न्यन कराया गया। शिक्षा और संस्कृति के प्रति यह उनका समर्पण प्रदर्शित करता है। श्री राजेंद्र शुक्ल गौ-सेवा के कार्यों के लिए सदैव प्रयासरत रहे हैं। उनके द्वारा गौ-सेवा में जनमानस की सहभागिता एवं प्रयासों को आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने की दिशा में प्रयास किए गये हैं। बसामन मामा गौ-अभयारण्य गायों की देखभाल और संरक्षण के उत्कृष्ट प्रयासों का मूर्त मॉडल है।

    श्री शुक्ल स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता के महत्व को जानते हैं और सदैव इस दिशा में प्रयास करते रहे हैं। श्री शुक्ल के नेतृत्व में स्वच्छ रीवा-स्वस्थ रीवा मिशन के तहत नगर पालिक निगम रीवा में करीब 20 से अधिक सुलभ शौचालय का निर्माण कराया गया है, साथ ही अभियान चलाकर नगर नगर पालिक निगम रीवा के अन्तर्गत जितने भी शुष्क शौचालय थे उनके स्थान पर जलरहित शौचालय निर्माण आन्दोलन चलाया गया था। स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के लिए उन्होंने ज़िला चिकित्सालय का उन्नयन, सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल का निर्माण और चिकित्सकों की नियुक्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किये हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करने के लिए वे सतत प्रयास कर रहे हैं, ताकि हर क्षेत्र के नागरिकों को उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाएँ सुलभता से प्राप्त हो सकें।और अंत में श्री शुक्ल की सोच और संकल्प को रेखांकित करती हुई दो पंक्तियाँ –

    भीड़ में भीड़ बनकर रहे तो क्या रहे
    भीड़ में अपनी निजी पहचान होनी चाहिए।

    लेखक ताहिर अली सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक जनसम्पर्क अधिकारी रह चुके है। 

  • Birthday Special :राजेन्द्र शुक्ल यानि कि विजन,मिशन और एक्शन !

    सपने देखना और उसे यथार्थ के धरातल पर उतारकर मूर्त रूप देना, राजनीति में यह दुर्लभ गुण और पुरुषार्थ किसी में देखना है तो राजेन्द्र शुक्ल के अतिरिक्त विरले ही राजनेता ढूंढे मिलेंगे। एक युवावय विधायक से उप मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा के पीछे यदि सबसे महत्वपूर्ण कारक है तो मेरी समझ में यही है।पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भाजपा में जिस धैर्य, विनम्रता और सर्व समावेशी, सर्वस्पर्शी दृष्टि की अपेक्षा की जाती है श्री शुक्ल इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।

    एक बार की घटना का मुझे ध्यान है। मध्यप्रदेश भवन में कैलाश विजयवर्गीय(तब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) अपने मित्रों से राजेन्द्र जी का परिचय दे रहे थे कि ये ‘लो प्रोफाइल’ में रहने वाले मध्यप्रदेश के बड़े कद के नेता हैं, मुझसे भी बड़े। यह विजयवर्गीय जी का बड़प्पन और स्नेह था, वे जो कह रहे थे उसका भाव कदाचित ‘चने के झाड़’ में चढ़ाने वाला नहीं था।

    2013 में बने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री

    2013 के विधानसभा चुनाव हुए तब राजेन्द्र शुक्ल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री थे। तब एक बड़ा मुद्दा था बिजली का। स्थिति कुछ ऐसी थी कि सरकार और संगठन की बैठकों में सिर्फ एक बात उठती – यदि हम चौबीसों घंटे बिजली नहीं दे पाए तो क्षेत्र में जाकर वोट मांगना मुश्किल होगा। हम लोगों ने बिजली को लेकर कांग्रेस का बहुत मजाक बनाया है यदि व्यवस्था ठीक न हुई तो हम सब मजाक बन जाएंगे।मध्यप्रदेश में बिजली की व्यवस्था को दुरुस्त करने की चुनौती ऊर्जा मंत्री के तौरपर राजेन्द्र शुक्ल को मिली। चौबीस घंटे बिजली देने की योजना पर काम हुआ और इस मिशन का नाम दिया गया ‘अटल ज्योति योजना’। उन दिनों मध्यप्रदेश में निजी बिजली घरों में काम चल रहे थे और सरकारी क्षेत्र के बिजली घरों की उत्पादन क्षमता सीमित थी। बिजली का कैसे प्रबंध हुआ यह राजेन्द्र शुक्ल और उनके ऊर्जा विशेषज्ञों की टीम जाने लेकिन मध्यप्रदेश के लोगों ने रोशनी का मोल जाना। सिंचाई के लिए खेतों में पंप निर्बाध गति से हरहराते रहे। बच्चों की पढ़ाई में बिजली बाधा नहीं बनी, गर्मी और उमस रात की नींद हराम न कर सकी।
    2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के पीछे ‘लाड़ली लक्ष्मी’ की कृपा तो रही ही लेकिन शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ‘अटल ज्योति योजना’ ने पंख लगा दिए। इस उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ऊर्जा मंत्री के तौर पर राजेन्द्र शुक्ल को दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया। और मीडिया के मित्रों को सिहोर के शेरपुर का वह किसान सम्मेलन भी ध्यान में होगा जब प्रधानमंत्री ने ऊर्जा क्षेत्र में मध्यप्रदेश की उपलब्धियों का बखान करते हुए कहा था कि आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि ऊर्जा प्रबंधन के मामले में मध्यप्रदेश गुजरात से आगे निकल गया। विनय की प्रतिमूर्ति राजेन्द्र जी ने इसका श्रेय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और ऊर्जा विभाग की कर्मठ टीम को दिया।
    मुझे ध्यान है, एक बार देश के मंत्रियों के प्रतिनिधिमंडल में राजेन्द्र शुक्ल जर्मनी गए। डेस्टिनेशन में यूरोप के की अन्य देश भी थे। लौटने पर मैंने उनसे यूरोप यात्रा के संस्मरण और अनुभव जानने चाहे। मुझे उम्मीद थी कि वे स्विट्जरलैंड, फिनलैंड की आबोहवा, पेरिस के एफिल टावर या जर्मनी के बर्लिन की साफ-सुथरी सड़कों, अल्पस पर्वत के सैर-सपाटे पर कुछ दिलचस्प बताएंगे।

    पर ये क्या..? उन्होंने बिना वक्त गंवाए कहा

    शुक्ला जी कमाल है इडिनबर्ग में बिजली की खेती होती है। बिजली की खेती..! लोग अपने घर की छतों में सोलर पैनल से बिजली पैदा करते हैं, जरूरत के अलावा उसे सरकार को बेंच देते हैं। उन्होंने मुझे नेट मीटरिंग के बारे में समझाते हुए कहां – विश्व का भविष्य अब सौर ऊर्जा पर ही है इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा। दो महीने बाद पता चला कि रीवा के उजागर बदवाल पहाड़ और पठार की पंद्रह सौ से ज्यादा हेक्टेयर भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र की तैयारी चल रही है। एक उपक्रम गठित हुआ रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट। और दो साल के भीतर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका वर्चुअल लोकार्पण किया तो हमने जाना कि यह विश्व के सबसे बड़े सोलर एनर्जी काम्प्लेक्स में से एक है। यहां साढ़े सात सौ मेगावाट बिजली पैदा होती है जो ग्रिड से होते हुए दिल्ली के मेट्रो तक पहुंचती है। रीवा अल्ट्रा मेगा की उत्पादित बिजली का टैरिफ विश्व में सबसे कम है, शायद डेढ़ रुपए की एक यूनिट। इसकी प्रोजेक्ट को लेकर एकबार पाकिस्तान की संसद में बहस हुई कि क्या भारत के रीवा में सूरज ज्यादा रोशनी देता है कि वे सस्ती बिजली बना रहे हैं और हम अबतक इसके बारे में सोच भी नहीं पाए।

    राजेन्द्र शुक्ल ने समय समय पर वन, पर्यावरण, आवास, उद्योग, खनिज जैसे मंत्रालयों का दायित्व संभाला। जब जिस विभाग में रहे कर्मचारियों, अधिकारियों ने उसे स्वर्णकाल माना। एक जानकारी लोगों को शायद कम ही है। 2008 में ये वन मंत्री बने। तब पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो चुका था। उन्होंने अधिकारियों से पूछा पन्ना को बाघों से कैसे आबाद किया जाए। और फिर उन्होंने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन के समक्ष खुद की साख को दांव पर लगाते हुए कैप्टिव टाइगर्स को वाइल्ड बनाने की मंजूरी ली। पन्ना आज फिर बाघों से आबाद है। कैप्टिव को वाइल्ड बनाने की यह घटना विश्वभर के वन्य प्रेमियों के लिए विलक्षण है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था। सफेद बाघ रीवा की पहचान रहा। 1976 में गोविंदगढ़ का आखिरी सफेद बाघ भी नहीं रहा। हम सब रीवा में सफेद बाघ का ख्याली पुलाव ही पकाते रहें। वन मंत्री रहते हुए विन्ध्य में एक बार फिर सफेद बाघ लाने की पहल की। आज मुकुन्दपुर के ह्वाइट टाइगर सफारी का नाम दुनिया में है। राजेन्द्र जी ने जिन विभागों की कमान संभाली वहां अपनी छाप छोड़ी, नवाचार किए और इतिहास रचा।

    2018 का चुनाव भाजपा के लिए संघातिक रहा। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। यह धैर्य और कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का समय था। पूरे प्रदेश में सिर्फ विन्ध्य ही ऐसा था जो भाजपा संगठन की रीढ़ बनकर तना रहा। 30 में से 24 सीटें भाजपा के खाते में आईं। स्वाभाविक तौर पर यहां के नेता राजेंद्र शुक्ल थे। उनके प्रभार के जिलों सिंगरौली, शहडोल व गृह जिले रीवा में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया, मतलब कांग्रेस शून्य। दो साल बाद कांग्रेस की सरकार गिरी। शिवराज सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार गठित हुई। देशभर के राजनीतिक प्रेक्षक हैरत में रह गए कि राजेन्द्र शुक्ल को मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया। यहां तक कि विपक्ष भी हतप्रभ सा रहा। राजेन्द्र शुक्ल अपनी चिर-परिचित विनम्रता के साथ रहे आए। पत्रकार जब पूछते तो उनका जवाब होता – बहुत रह लिया मंत्री, जिनकी वजह से सरकार बनी उनका मंत्री बनना ज्यादा जरूरी है। उल्टा पूछते – क्या विधायक की हैसियत किसी मंत्री से कम होती है? बहरहाल मीडिया और राजनीतिक लोगों को पता था कि ऐसा क्यों हुआ..? इस दुरभिसंधि के किरदार कौन लोग थे? खैर राजेन्द्र शुक्ल को कोई फर्क नहीं पड़ा और रीवा के लोगों को यह अहसास तक न हुआ कि वे मंत्री नहीं हैं।

    2023 के चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड सफलता के पीछे भी विन्ध्यविजय है। पिछली बार से एक सीट ज्यादा 25 सीटों पर परचम लहरा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को विन्ध्य के राजेन्द्र शुक्ल की महत्ता समझ आई। इस समझ के पीछे वे दो साल महत्वपूर्ण है जिन्हें राजेन्द्र जी ने धैर्यपूर्वक बिताए। जब मुख्यमंत्री पद पर मोहन यादव के साथ उप मुख्यमंत्री पद के लिए राजेन्द्र शुक्ल का नाम घोषित हुआ तो प्रदेश के लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ, लगभग हर जुबान से यही निकला कि श्री शुक्ल डिजर्व करते हैं। राजेन्द्र शुक्ल आज प्रदेश के स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा मंत्री हैं। यह उत्कट सेवा का क्षेत्र है। छह महीने के भीतर ही ‘स्वस्थ्य प्रदेश स्वस्थ जन’ का रोड मैप तैयार हो गया। 40000 से ज्यादा रिक्तियों पर भर्ती आरंभ। पंचायत स्तर तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचे इसके जतन शुरू। हर जिले में मेडिकल कालेज खुले युद्धस्तर पर काम सामने। राजेन्द्र शुक्ल 100 प्रतिशत परिणाम देने के लिए जूझते हैं, इसलिए आज उन्हें विजन, मिशन और एक्शन का पर्याय कहा जाता है।

    राजेन्द्र जी की कर्मठता को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने एक नजर में ही भांप लिया था। भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे की एक्सरे वाली नजर इनपर पड़ी और पितृवत स्नेह व दुलार के साथ भाजपा में ले आए और 1998 में कांग्रेस के किले रीवा के रणांगन में उतार दिया। पहला चुनाव हारने के बाद उससे सबक लेकर 2004 से जो शुरूआत की वह निरंतर, निर्बाध जारी है। विन्ध्य में कई यशस्वी नेता हुए जिन्हें एक दूसरे की लकीर मिटाने के लिए भी जाना जाता है लेकिन राजेन्द्र शुक्ल इस राजनीति में बिल्कुल नासमझ हैं। न वे कोई लकीर मिटाते न खींचते बल्कि सपनों को यथार्थ के धरातल पर उतारने में यकीन करते हैं। उदाहरण सामने है- रीवा का हवाई अड्डा, सुपर स्पेशियलिटी, टाईगर सफारी, सोलर पार्क, फ्लाईओवर्स, विश्वस्तरीय टनल, पत्रकारिता का विश्वविद्यालय, स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स, इको पार्क और भी बहुत कुछ जो रीवा शहर को महानगर के कायांतरण के लिए अनिवार्य है। आधिकारिक तौर पर 3 अगस्त उनका जन्मदिन है..हम सबकी शुभेक्षा उनके यशस्वी जीवन के साथ है।

    लेखक वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल है

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