श्रावण मास विशेष : शिव हमारे, निष्ठा हमारी, आपको क्या…?

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श्रावण मास विशेष : ऐसे छलछंद हिन्दू धर्म में ही चल पाएंगे क्योंकि और किसी की मान्यता या श्रद्धा के विरुद्ध संभाषण करने की क्षमता इनमें है ही नहीं, ये केवल हमारी क्षमाशीलता का उपहास बना सकते हैं।
श्रावण मास आते ही कुछ विधर्मियों को हमारे शिव दुग्धाभिशेष से भारी अपच होने लगती है, तरह तरह के प्रपंच शुरू हो जाते हैं,अब आप इस फोटो में ही देख लीजिये,समझ नहीं आता जब सड़कें रक्त रंजित होती हैं तब इनको गरीबों और निरीह प्राणियों का ख्याल क्यों नहीं आता?

हमारे शिव हम दुग्ध से अभिषेक करें या अपनी क्षमतानुसार किसी ज़रूरतमंद को दान करें ये हमारी श्रद्धा है आपको क्या? विडंबना तो ये है की अनर्गल प्रलाप करने वाले वो ही हिन्दू हैं जो कहते हैं की राम तो कभी थे ही नहीं… हिन्दू धर्म में कोई भी परम्परा या कोई भी अनुष्ठान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखा गया है कई वर्षों की कठिन साधना एवं ऋषि मुनियों के द्वारा कई वर्षों के शोध के पश्चात ही उस परम्परा को जनमानस के बीच प्रचलित किया गया और उसका पालन करने के लिए प्रेरित किया गया।

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तर्कशील लोगों का कहना होता है कि हजारों लीटर दूध व्यर्थ बहाने की बजाय उतना दूध गरीबों में बांट दिया जाएं। वास्तव में इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परंंपराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परंपराओं को समझ नहीं सकते।

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विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान विष की उत्पत्ति हुई। ये विष दुनिया को समाप्त कर सकता था। दुनिया को बचाने के लिए भगवान शिव जी ने इसे पी लिया, जिससे उनका शरीर जलने लगा। देवताओं ने उनके विष की घातकता कम करने के लिए उन पर पानी डाला लेकिन उससे ज्यादा असर नहीं हुआ। दूध की प्रकृति शीतलता प्रदान करने वाली होती है। इसलिए देवताओं ने उन्हें दूध ग्रहण करने के लिए कहा। दूध पीने से विष का असर कम होकर उनका शरीर जलने से बच गया। इसलिए शिव जी को दूध बहुत प्रिय है। तभी से भगवान शिव को ख़ुश करने के लिए शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है।

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आयुर्वेद के मुताबिक वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है। पत्ते वाली सब्जियों से वात बढ़ता है। सावन के महीने में गाय या भैस घास और पत्तियां ही खाते है। जिसके कारण दूध पीने से वात बढ़ने से कई तरह की बीमारियां होती है। घास के साथ-साथ गाय-भैस कई कीड़े-मकोड़े भी खा लेते है। जिसके कारण दूध कुछ हद तक जहरीला होकर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। इसलिए आयुर्वेद के अनुसार सावन के महीने में दूध का कम से कम सेवन करना चाहिए।
सावन के महीने में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा क्यों शुरु हुई?

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इंसान मुलत: धार्मिक प्रवृत्ति का प्राणी है। उसे यदि कहा जाता कि सावन में दूध पीना सेहत के लिए हानिकारक है, तो वो इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं देता। जैसा कि सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है, ‘cigarette smoking is injurious to health’ फ़िर भी लोग सिगरेट पीते है। इंसान की कमजोरी यह हैं कि वो अपनी सेहत अच्छी तो रखना चाहता है लेकिन अपनी इच्छाओं पर और अपनी जीभ पर उसका नियंत्रण नहीं रहता। इसलिए मुझे लगता है कि बहुत सोच-समझ कर हमारे पुर्वजों ने सावन के महीने में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा शुरु की होगी ताकि इंसान पुण्य कमाने के चक्कर में शिवलिंग पर दूध चढ़ाएगा और उतने दूध का कम सेवन होने से इंसान के स्वास्थ्य की रक्षा होगी।इस तरह शिवलिंग पर दूध चढ़ाना केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी उचित है।

और वैसे भी शिव हमारे निष्ठा हमारी आपको क्या??

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