Satna : बरसात के मौसम में चार महीने घरों में कैद रहते है यहां के ग्रामीण, जान जोखिम में डालकर पार करते हैं नदी

सतना,मध्यप्रदेश।।एकतरफ देशभर में आजादी के 75वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। वहीं आज भी जिले के कई गांव ऐसे हैं जहां के वाशिंदे समस्याओं से जकड़े हुए हैं। यहां सड़क-पानी-बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं पहुंच सकी हैं।


बता दें कि सतना जिले के कोठी तहसील मुख्यालय से करीब 10 किमी दूर ग्राम पंचायत डांडीटोला के अंतर्गत संग्रामटोला गांव के लोग वर्षों से समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन्हें सुलभ जीवनयापन के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हैं।

उन्हें मताधिकार तो मिला है लेकिन इसका फायदा चुनाव लड़ने वालों तक सीमित है। चुनाव जीतने के बाद सरपंच से लेकर विधायक-सांसदों को इस गांव की बेहतरी के लिए समय नहीं मिला। आजादी के बाद से ही उपेक्षा का दंश इस गांव के लोग भोगते आ रहे हैं।

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ग्रामीणों के अनुसार इस गांव से शहर की ओर जाने के लिए पक्का मार्ग भी नहीं निर्मित हो पाया है, इसके अलावा उनका जीवन नरक समान है। यदि किसी घर में कोई बीमार पड़ जाए तो यहां पर एंबुलेंस आदि का आना नामुमकिन है। ग्रामीण ही अपने बीमार स्वजन को चारपाई पर लेटाकर उसे कांधे पर रखकर शहर की ओर भागते हैं।

बात करने पर ग्रामीणों का आक्रोश भी सामने आ जाता है। उनके अनुसार देश की आजादी को भले ही 75 साल से अधिक का वक्त हो गया हो लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिला है। वे आज भी समस्यारूपी गुलामी में जीने को विवश हैं।

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वहीं ग्राम संग्रामटोला में सेमरावल नदी में पुल ना होने की वजह से बरसात के 4 महीने संग्राम टोला के ग्रामीण घरों में कैद हो जाते हैं, आने जाने के लिए उन्हें जान जोखिम में डालकर नदी को पार करना पड़ता है, कई बार बड़ी दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं, आलम यह है कि ग्रामीणों ने नेताओं से लेकर अधिकारियों को अपनी समस्याओं के बारे में अवगत कराया, लेकिन आज तक ग्रामीणों को जुमले वादों एवं झूठे आश्वासन के अलावा कोई उचित निराकरण नहीं हो पाया,

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और पुल के समस्या की स्थिति जस की तस बनी रही, आज संग्राम टोला के ग्रामीणों द्वारा लामबंद होकर विरोध प्रदर्शन किया गया, साथ ही तहसीलदार कोठी सुषमा रावत एवं थाना प्रभारी जैतवारा सुरभि शर्मा की मौजूदगी में कलेक्टर के नाम चेतावनी भरा ज्ञापन भी सौंपा, साथ ही ग्रामीणों ने यह कहा है कि अगर 30 दिवस के अंदर पुल की समस्या का निराकरण नहीं होता है तो आगे वह बड़े आंदोलन एवं चक्का जाम करने पर मजबूर होंगे, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी।

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