Chhath Puja 2023 : सूर्य उपासना का महापर्व डाला छठ रविवार को स्थानीय संतोषी माता के तालाब घाट पर पूरे उत्साह, उमंग, विधि-विधान के साथ डूबते सूर्य देवता को वृतधारियों द्वारा अध्र्य देकर मनाया जायेगा। परंपरा और रीति रिवाज के साथ सरोवर में रविवार को आस्था का जन सैलाब उमड़ेगा, त्यौहार की गरिमा को देखने हजारों की तादात में धर्मावलंबी एकत्रित होंगे। चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से हुई, दूसरे दिन खरना कर महिलाएं संझा आरती कीं।
रविवार को तीसरे दिन अस्तांचली सूर्य देवता को वृतधारियों द्वारा अध्र्य के साथ सातविक होकर अपने हाथ से बनाये प्रसाद सहित मौसमी फलों को भगवान सूर्य देवता को अर्पण किया जायेगा। हजारों लोग इस अवसर पर सामूहिक रूप से भगवान से परिवार की सुख समृद्धि सहित सौभाग्य की मनोकामना को लेकर अराधना करेंंगे। लगातार चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में वृतधारी 36 घंटे तक निर्जला रह कर भगवान सूर्य देवता को अराधना करते हैं।
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किये खरना
पूजा के वृतधारी शनिवार को संझा आरती करने तालाब घाट पहुंचें, आरती पुष्पांजलि के बाद अपने घर पहुंच कर खीर पूड़ी बना उसका सेवन किये इसी समय पानी पीकर अपने आपको 36 घंटे तक के लिये निराहार होकर सूर्य देवता की आराधना में तनलीन हो गये। खरना में बना प्रसाद पहले वृतधारी महिलाएं गृहण कीं उसके पश्चात परिवार के अन्य लोग प्रसाद पाये। रविवार की शाम (डूबते सूर्य) और सोमवार की सुबह उदित होते भगवान भास्कर देव को वृतधारी प्रसाद भोग भेंटकर अर्पण करेंगे।
प्रसाद हुआ तैयार
सूर्य देवता को अध्र्य के साथ भोग अर्पण के लिए ठेकुआ का प्रसाद प्रमुख होता है। इस प्रसाद को वृतधारी अपने हाथों से बनाते हैं। ये प्रसाद मीठे आटे का बनता है। इसके साथ प्रसाद में गन्ना, गीला नारियल, सरीफा, अमरूद, अनार, संतरा, अन्नायास, नारंगी, मूंगफली, सिंघाड़ा, सकला, पंचमेवा सहित और जितने भी मौसमी फल मिल जायें सभी को एकत्रित कर प्रसाद के लिये उपयोग करेंगे।
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पूजा का महत्व
छठ सूर्य उपासना का पर्व है, इस त्यौहार को सूर्य षष्ठी वृत के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य देवता की उपासना उनकी कृपा पाने के लिये की जाती है। सूर्य देवता छठ पूजा सौभाग्य की समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिये की जाती है। मान्यताओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी की सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य देव माता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न छठी माता पुत्र की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया है। जन्म के छठें दिन छठी माता की पूजा होती है। यह पूजा इसलिये होती है ताकि नवजात बच्चे का गोचर शांत हो जाये और उसे किसी प्रकार का कष्ट न हो।
कठिन वृत
बिहार पूर्वांचल से शुरु छठ का त्यौहार सभी वृत त्यौहार में सबसे कठिन माना गया है। इसमें शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। लगातार चार दिन तक पूजा इसके साथ ही 36 घंटे तक बिना अन्न जल के रहकर डूबते एवं उदित होते सूर्य देवता को ठंडे पानी में खड़े होकर वृतधारी भगवान सूर्य देवता को अध्र्य देते हैं। छठ पूजा आज अपने गौरवशाली परंपरा को संजोये पूरे विश्व का एक मात्र सबसे कठिन तपस्या का पर्व बन गया है।
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गाये जायेंगे मंगलगीत
रविवार की शाम छठ पूजा करने वाले लोग जब अपने घरों से तालाब घाट के लिए निकलेंगे तो वृतधारी महिलाओं के साथ परिवार के अन्य लोग मंगल गीत गाते हुए तालाब घाट तक जायेंगे, इन्हीं के साथ भोग के लिये तैयार प्रसाद का टोकना सिर पर लेकर परिवार का मुखिया पीले वस्त्र धारण कर चलेंगे। वृतधारी लोग तालाब के भीतर स्नान कर तब तक खड़े रहेंगे जब तक कि सूर्य देवता अस्त नहीं हो जाते, इस अवसर पर रंग बिरंगे व धारण किये लोग छठ पूजा में चार चांद लगायेंगे।
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सहयोग की अपील
छठ पूजा आयोजन समिति के संरक्षक अजय कुमार सोनी, सचिव प्रभुदयाल शर्मा ने तालाब घाट पर आने वाले सभी धर्र्म प्रेमी लोगों से अनुरोध किया है कि पूजा व्यवस्था में किसी प्रकार की कोई अव्यवस्था न हो इस बात का विशेष ध्यान रहे। पूजा समिति जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन के विशेष अनुरोध करता है कि मेला में 25 से 30 हजार लोगों की उपस्थिति रहती है। इस लिहाज से आवागमन अवरुद्ध न हो व्यवस्था कराने में सहयोग करें। नगर निगम प्रशासन मेला व्यवस्था की तैयारी में अपना सहयोग तन्मयता के साथ प्रदान कर रहा है।