Mattur Village Karnataka: जहां एक तरफ आधुनिक परिवेश, जीवनशैली और अंग्रेजी का वर्चस्व शहरों के साथ ही गांव-गांव तक पकड़ मजबूत बना चुका है, वहीं दक्षिण भारत में एक ऐसा भी गांव है, जहां घर-घर संस्कृत बोली जाती है. अगर आप इस बार घूमने का टूर बना रहे हैं, तो इस गांव को देख सकते हैं और यहां के परिवेश और संस्कृति से रूबरू हो सकते हैं. यहां जाने के बाद आप देखेंगे कि जिस तरह से हम अपने दैनिक जीवन के कार्यकलाप में हिंदी या अंग्रेजी के साथ ही स्थानीय बोली एवं भाषाओं का उपयोग करते हैं, उसी तरह से यहां के लोग आपस में मिलने, बात करने और किसी से कुछ कहने के लिए संस्कृत भाषा का उपयोग करते हैं. पहली बार में यह देखकर आप हैरान रह जाएंगे क्योंकि शहरों में आपस में संस्कृत(sanskriti) में बात करते हुए कम ही लोग देखने को मिलते हैं. या तो आपको यूनिवर्सिटी की किसी क्लास में या फिर किसी संस्कृत सेमीनार एवं पूजा-पाठ में ही संस्कृत बोलते हुए सुनने और देखने का अवसर मिलता है.
क्या है इस गांव का नाम जहां घर-घर बोली जाती है संस्कृत?
इस गांव का नाम मत्तूर (Mattur Village Karnataka) है. जो कर्नाटक के शिमोगा जिले में स्थित है. जानकारी के मुताबिक, इस गांव में करीब 300 परिवार रहते हैं. जिनके घर-घर में संस्कृत आम बोलचाल की भाषा के तौर पर उपयोग होती है. इस गांव को देखने के लिए जाने वाले सैलानियों को अलग तरह का अनुभव महसूस होता है. संस्कृत बोलने के साथ ही गांव वालों की वेषभूषा देखकर भी आपको अलग तरह की खुशी होगी. आपको यहां जाने के बाद लगेगा कि इसी गांव ने असल मायने में दुनिया की सबसे प्राचीनतम भाषा और सभ्यता को सहेज कर रखा हुआ है.
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यह गांव बेंगलुरू से लगभग 320 किलोमीटर दूर स्थित है. इतना ही नहीं यहां के हर परिवार का बच्चा संस्कृत की पढ़ाई करता है. यहां आप दुकानदार से लेकर छोटे-छोटे बच्चों को फर्राटेदार संस्कृत बोलते हुए देख सकेंगे. असल मायने में वैदिक जीवनशैली देखनी हो तो आपको वो इसी गांव में दिखएगी. यह गांव बारहमासी तुंगा नदी के तट पर बसा हुआ है. यहां आपको छोटे-छोटे बच्चे संस्कृत ग्रंथों को पढ़ते और आपस में बात करते हुए दिख जाएंगे. कहा जाता है कि यहां 1980 के बाद से ही घर-घर संस्कृत पढ़ने और आम बोलचाल के तौर पर संस्कृत भाषा का उपयोग करने का चलन बढ़ा. जिसका श्रेय संस्कृति भारती संस्था को जाता है. 1981 में शुरू हुई इस संस्था ने यहां 10 दिवसीय संस्कृत कार्यशाला का आयोजन किया था. जिसके बाद से यहां संस्कृत भाषा की अलख जग उठी. इस गांव में प्राचीन ब्राह्मण समुदाय संकेथियों रहते हैं. जिनके बारे में कहा जाता है कि ये लोग करीब 600 साल पहले केरल से यहां आ बसे थे. आप भी इस बार अपनी योजना बनाकर इस गांव की सैर कर सकते हैं.satnatimes.in