Gandhi Jayanti :सुलखमा गांव से विलुप्त हो रहा गांधी जी का चरखा, अधिकारियो को गांधी जयंती पर आती इस गांव की याद

सुलखमा गांव से विलुप्त हो रहा गांधी जी का आदर्श - Satna Times
सुलखमा गांव से विलुप्त हो रहा गांधी जी का आदर्श - Satna Times

मैहर ,मध्यप्रदेश/जयदेव विश्वकर्मा।। आज भी मध्यप्रदेश के मैहर जिले में एक ऐसा गांव है जहां के लोग महात्मा गांधी बापू जी के सिखाए पाठ का अनुसरण कर रहे हैं, तो आपके लिए इस बात पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा.परंतु यह सही है।

सुलखमा गांव से विलुप्त हो रहा गांधी जी का आदर्श - Satna Times
सुलखमा गांव से विलुप्त हो रहा गांधी जी का आदर्श – Satna Times

दरअसल मैहर से लगभग 42 किलोमीटर दूर मैहर जिले के अंतर्गत रामनगर ब्लॉक में सुलखमा गांव है जहां आज भी बापू के सिखाए पाठ का अनुसरण किया जा रहा है.लेकिन प्रशासन की मदद न मिल पाने से सुलखमा से चरखा विलुप्त होते नजर आ रहा है, स्वावलंबी बनने की प्रथा को बनाए रखने वाले इस गांव के लगभग हर घर में एक चरखा चलता था, जो इनकी जरूरत भी है और परंपरा भी क्योंकि बुजुर्गों ने महात्मा गांधी से पाठ सीखा और इन्हें विरासत में दे गए।

खंडहर में तब्दील हो गया प्रशिक्षण केंद्र

खंडहर में तब्दील हो गया प्रशिक्षण केंद्र - Satna Times
खंडहर में तब्दील हो गया प्रशिक्षण केंद्र – Satna Times

आजादी के 77 साल बाद भी यह परंपरा कायम है लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के चलते चरखों की चकरी अब थमने लगी है. जरूरत है तो एक सरकारी मदद की है जो आज तक नहीं मिली. वही कहने को तो गांव में चरखा चलाने के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र भी बनाया गया था, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. और ताला जड़ा हुआ है, यहां के लोग आज भी मशीन या प्रशासनिक सुविधाओं के इंतजार में बैठे हैं.

विलुप्त हो रहा गांव से गांधी जी का चरखा

इस गांव में लगभग साढ़े तीन हजार के करीब लोग रहते हैं एक समय ऐसा भी था जब यहां के प्रत्येक घरों से चरखे की आवाज सुनाई दिया करती थी, हम यह भी कह सकते हैं कि यहां के हर घर में चरखा चलता था. लेकिन वर्तमान में प्रशासनिक उपेक्षाओं के चलते अब यह प्रथा धीरे-धीरे सिमट रही है और जहा सभी घरों में चरखा चलता था, अब वही चार से पांच ही घरों में ही चरखा चल रहा है।ग्रामीणों की माने तो इसकी मुख्य वजह यह प्रशासन ध्यान नही दे रहा है।

महिलाओं ने भी इस काम मे बटाया हांथ

महिलाएं भी बता इस काम मे हाथ
महिलाएं भी बता इस काम मे हाथ

इस गांव के लोंग चरखे से कपड़े और कंबल बनाकर बेचते हैं इसी से इनकी आजीविका भी चलती है. इनका काम भी बंटा हुआ है. चरखा चलाकर सूत कातने का काम घर की महिलाओं का होता है. महिलाएं घरेलू काम निपटाकर खाली बचे समय में चरखे से सूत तैयार करती हैं. इसके बाद का काम घर में पुरुषों का होता है, जो इस सूत से कंबल और बाकि चीजें बुनने का काम करते हैं.

नही मिल पाती पूरी मजदूरी

दुद्धी पाल बताते हैं कि बजुर्गों की परंपरा पर आधारित ये रोजगार अब कमजोर होने लगा है. कारण यह है कि कई दिनों तक चरखा चलाने, सूत कातने और बुनने के बाद भी पूरी मजदूरी तक नहीं मिल पाती है.व्यापारी पहले आते थे और समान खरीद कर ले जाते थे लेकिन अब कोई नही आता है, पूरी तरह से हमे आमदनी तक नही निकल रही है, इसलिए हम इसे बंद भी नही कर सकते है क्योंकि यही हमारी जीविका और रोजगार है. इसके अलावा हमारे पास कोई रोजगार नहीं है.

गांव के लोग दे रहे बापू जी को सच्ची श्रद्धांजलि

आज के युग में जहां खुद को आधुनिक दिखाने की होड़ में लोग अपनी पुरातन चीजों को त्याग रहे हैं वही इस गांव के लोग अपनी प्राचीन परंपरा को अपना विरासत समझ उसे आगे बढ़ा एक आदर्श बन गए हैं. हम सभी को इस गांव से सीख लेनी चाहिए क्योंकि असल मायने में बापू को सच्ची श्रद्धांजलि इसी गांव के लोग दे रहे हैं.

एक कम्बल बनाने में एक हफ्ते का समय

वही रामदुलारी पाल ने बताया कि हमने अपने बुजुर्गों से चरखा चलाना सीखा है और वही से सीखकर हम लोग भी चरखा चलाकर जीवन यापन करने लगे है, लेकिन एक कम्बल बनाने में एक सप्ताह से लेकर दस दिन का समय लग जाता है और वह कम्बल व्यापारी एक हजार रुपये का खरीदते है इसमे आमदनी सही ढंग से नही मिलती है। इसलिए हम लोग इसको अब मजबूरन चला रहे है।

गांधी जयंती पर प्रशासन को आती है सुलखमा गांव की याद

वही सुरेंद्र पाल ने बताया कि प्रशासन हमारी कोई खास मदद नही कर रहा है, जब गाँधी जयंती आती है तभी गांव आकर पिछले साल लोगो साल बाटी गयी थी बाकी कोई और खास मदद नही की गई है, प्रशासन अगर मदद करे तो हम यह चरखा चलाते रहेंगे अन्यथा यह बन्द होने की कगार में है,क्योंकि इससे हमें इतनी मजदूरी नही मिल पाती है।

सर्वे कराकर आवश्यकता को करेंगे पूरा

कलेक्टर रानी बाटड़ ने बताया कि रामनगर तहसील के सुलखमा में जो चरखा या हतकरघा से कपड़ा बनाया जा रहा है, उसके लिए हम प्रयास करेंगे कि हमारी जो विभागीय योजनाएं जैसे ग्रामीण विकास की योजना या हतकरघा विभाग की योजनाएं है हम उससे उन्हें लाभान्वित करेंगे. हम यह भी प्रयास करेंगे कि उनके द्वारा बनाये जा रहे कपड़े या वस्त्र हम उन्हें बाजार में उपलब्ध कराएंगे, अभी 2 अक्टूबर को गांधी जयंती है हम इस अवसर पर कोशिश करेंगे कि वहां हम कुछ आयोजन करें और उनकी जो भी आवश्यकता है उसको हम समझेंगे और सर्वे कराएंगे।

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