Kolkata Doctor : आज की द्रौपदियों को अब शस्त्र उठाने की जरूरत

Kolkata Doctor : आज की द्रौपदियों को अब शस्त्र उठाने की जरूरत
Kolkata Doctor : आज की द्रौपदियों को अब शस्त्र उठाने की जरूरत

Kolkata Doctor : “सुनो द्रौपदि शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे” युवा कवि पुष्यमित्र उपाध्याय ने यह रचना महिलाओं को अगली निर्भया बनने से बचने के लिए लिखी थी. कोलकाता में हुई महिला डॉक्टर के साथ बर्बरता को देख यही पंक्तियां याद आ रही है. आज भारतीय नारियों को चाहिए की वो इन्हीं पंक्तियों के नक्शेकदम पर चलें और खुद की रक्षा करें.

आज पूरे देश में पश्चिम बंगाल में हुई महिला डॉक्टर के साथ बर्बता के विरोध में प्रदर्शन किए जा रहें हैं कहीं कैंडल मार्च तो कहीं जनाक्रोश. लेकिन इन प्रदर्शनों का निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता कुछ दिन प्रदर्शन होंगे विरोध होगा इसके बाद लोग भूल जाएंगे और फिर ऐसी ही कोई और घटना सामने आएगी. अवसर पा सरकारें एक दूसरे पर आरोप–प्रत्यारोप लगाती हैं और इन मामलों के अपराधी जिनपर इन्हें बोलना चाहिए उनके ऊपर इनकी जुबां तक नहीं खुलती, जाहिर है सिर्फ राजनैतिक लाभ के उद्देश्य से ही वो इन मामलों पर बयानबाजी करते हैं.

Kolkata Doctor : आज की द्रौपदियों को अब शस्त्र उठाने की जरूरत

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है की पश्चिम बंगाल में महिलाओं के साथ ऐसी अपराधिक घटना घटी हो यहां से अक्सर ऐसी घटनाएं समाने आती ही रहतीं हैं. कुछ दिन पहले ही एक घटना सामने आई थी जहां एक महिला को सरेआम कुछ बदमाशों ने निर्वस्त्र कर पीटा था किसी के अंदर हिम्मत नहीं थी की उस महिला को बचा सके. सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं अपितु पूर्ण देश का यही हाल है. अब सवाल यह खड़ा हो रहा है की आखिर गलती किसकी है की महिलाओं के साथ हो रही ऐसी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं? क्या सरकारें सिर्फ आरोप प्रत्यारोप करना ही जानती हैं इन घटनाओं को रोकने का काम नहीं करती?

समाज ने भी महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार को बढ़ावा देने का काम किया है. हमारे सामने किसी महिला के साथ बत्तमीजी की जाती है पर हम मौन रहते है हमारी इसी चुप्पी से इन अपराधियों को हिम्मत मिलती है और बड़ा अपराध करने की. इसलिए आज महिलाओं को चाहिए की वह अपने आप को इतना मजबूत बना ले की किसी भी अपराधी की इतनी हिम्मत न पड़े की वह उनके साथ ऐसे अपराध करने की सोच भी रखे.

अंत में एक बार फिर युवा कवि पुष्यमित्र उपाध्याय की कुछ पंक्तियां “छोड़ो मेहंदी, खड़ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचालो. कैसी रक्षा मांग रही हो दुःशासन दरबारों से, स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं वे क्या लाज बचाएंगे, सुनो द्राैपदी ! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे”.

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