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अगला उत्तर कोरिया बनने को तैयार है ईरान, गोले-बारूद गिरें या मिसाइलें, न्यूक्लियर बम तो बनकर रहेगा

ईरान पर अमेरिका की ओर से किया गया हमला उसके परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने की बजाय उसे और भी ज्यादा आक्रामक बना सकता है. अमेरिकी हमले के बाद ईरान की ओर से जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है, वो कम से कम ऐसा ही कह रही है. अमेरिका का दावा है कि उसने ईरान के तीन मुख्य यूरेनियम संवर्धन केंद्रों – फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान पर सटीक बमबारी करके उन्हें नष्ट कर दिया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर पूर्ण रूप से रोक नहीं लग सकती है.अगला उत्तर कोरिया बनने को तैयार है ईरान, न्यूक्लियर बम तो बनाकर मानेगा

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर जताई जा रही चिंता पहली बार नहीं है, जब से अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने इसकी जानकारी दी थी, तब से पश्चिमी देशों के निशाने पर ईरान आ गया था. पहले ही आशंका जताई गई कि अमेरिका और इज़राइल उसके परमाणु कार्यक्रम को निशाना बना सकते हैं. इसी आशंका के चलते उसने देश के अंदर 9 से अधिक गुप्त स्थानों पर संवर्धन केंद्र स्थापित कर लिए थे.

ईरान ने दिया अमेरिका को चकमा

ईरान की इस तैयारी के बारे में किसी को पता नहीं था. इसका प्रमाण हाल ही में तब मिला, जब उसने दावा किया कि फोर्दो केंद्र से संवर्धित यूरेनियम पहले ही हटा लिया गया था, जिससे हमले का असर सीमित रहा. अगर पिछला इतिहास देखा जाए, तो ईरान ने शुरुआती वर्षों में अपने परमाणु कार्यक्रम को गुप्त रखा और अमेरिका-इज़राइल को इसकी भनक तक नहीं लगने दी.

उत्तर कोरिया की राह पर ईरान

ईरान भी अब उत्तर कोरिया की रणनीति को अपनाता दिख रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह संभव है कि ईरान अब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ अपना सहयोग समाप्त कर दे. इसके अलावा ईरान परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से भी बाहर निकलने का फैसला ले सकता है, जिसकी कवायद उसने शुरू कर दी है. यह वही राह है जो उत्तर कोरिया ने 2003 में अपनाई थी, और तीन साल बाद 2006 में उसने अपना पहला परमाणु परीक्षण कर लिया था. अगर ईरान भी इसी दिशा में आगे बढ़ता है तो वह अंतरराष्ट्रीय निगरानी से बाहर रहकर अपने संवर्धन और हथियार निर्माण को गोपनीय रूप से तेज़ी से आगे बढ़ा सकता है.

ईरान का परमाणु कार्यक्रम अब भी सुरक्षित?

जिस तरह की खबरें आ रही है, उससे ये लग रहा है कि अमेरिका और इज़राइल के हमलों से ईरान को कुछ समय के लिए तकनीकी झटका जरूर लगा है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है. ईरान आगे अपने बिखरे हुए परमाणु ढांचे को पुनर्गठित करेगा. इस बार वो ज्यादा कठोर और सतर्क रणनीति अपनाएगा. इससे न केवल मिडिल ईस्ट में तनाव और अस्थिरता बढ़ेगी, बल्कि परमाणु प्रसार को लेकर वैश्विक चिंता भी गहराएगी. अगर ईरान ने वाकई IAEA से नाता तोड़ लिया, तो यह क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है.

Shweta Bharti

I am student of bachelor of art in journalism and communication in 1st year | I am doing my graduation in the central university of Indira Gandhi National Tribal University Amarkantak

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