Poetry

  • BoycottAdipurush :बंद करो ये कारोबारी धर्म कोई’ ये खेल नहीं, आदिपुरुष का रामायण से दूर दूर तक मेल नहीं…

    BoycottAdipurush : राम सिया की पावन गाथा स्वयं एक मर्यादा है।ऋषि मुनियों ने हर युग में ही इसे ध्यान में साधा है।।ऐसा ये परिहास जो’ तुमने शायद नहीं गढ़ा होता।रामचरित रचने से पहले रामचरित्र पढ़ा होता।।बॉलीवुड का मंच नहीं ये त्याग की’ स्वर्णिम गाथा है।जहाँ भाव पहले आते हैं शब्द बाद में आता है।।ज्ञानी ध्यानी राम भक्त का कैसा भेष दिखाया है।

    पवनपुत्र की वाणी से छपरी का भाव सुनाया है।।
    रामायण के असुर पात्र भी भाषा में मर्यादित थे।
    माँ सीता के अंग अंग सब भगवा में अच्छादित थे।।
    कब तक अपनी धर्म ध्वजा का ये अपमान सहेंगे हम।

    कब तक मूक तमाशा देखें औ चुपचाप रहेंगे हम।।
    राम न केवल नाम मात्र ये जीवन की आधारशिला।
    वो क्या समझे भावों को मुँह माँगा जिसको दाम मिला।।बंद करो ये कारोबारी धर्म कोई’ ये खेल नहीं।
    आदिपुरुष का रामायण से दूर दूर तक मेल नहीं।।

    प्राची मिश्रा,कवयित्री

  • World Environment Day 2023 : एक ऐसी कहानी जो आपको कुछ पल के लिए सोचने पर विवश….

    World Environment Day 2023 : आज विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष ,आज सुनाती हूँ एक ऐसी कहानी जो आपको कुछ पल के लिए सोचने पर विवश कर देगी और हो सकता है आपके विचारों को प्रकृति की ओर मोड़ भी दे और आपको ये एहसास दिलाये की प्रकृति का संरक्षण कितना आवश्यक है। मैं आज बात कर रही हूँ मेरे पिताजी आदरणीय आलोक त्रिपाठी जी के विषय में वो शासकीय प्राथमिक शाला महादेवा सतना में शिक्षक हैं।

    हर बेटी के लिए उसके पिता किसी सुपर हीरो से कम नहीं होते,विषम परिस्थियों से भी मुस्कुराते हुए संतान से भेंट करना पिता होने का अनिवार्य गुण हो जाता है,एक हाथ में खाने का डिब्बा और दूसरे हाथ में जिम्मेदारियों की पोटली संभाले हर दिन परिवार को खुशियों से सींचना आसान कहाँ होता है।मैंने भी देखा है अपने पिता जी को हर रिश्ते को बेहतर सींचते हुए, वो एक साधारण सरकारी शिक्षक हैं और असाधारण अनुशासन और गुणों के धनी हैं।

    आलोक त्रिपाठी,शासकीय शिक्षक

    पिताजी मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल शिक्षक सम्मान जैसे कई सम्मान से सम्मानित भी हो चुके हैं।उनके लिए शिक्षा और सेवाभाव सर्वोपरि है, वर्ष में दो से तीन बार रक्तदान से लेकर खानाबदोश बच्चों को शिक्षित करने जैसे सराहनीय क़दम पिताजी द्वारा उठाये जाते रहे हैं।एक साधारण जीवनशैली और पूजा पाठ में लीन रहने वाले मेरे पिता बहुत ही उच्च विचारों के स्वामी भी हैं, लेकिन आज जो विशेष बात मुझे आपसे बतानी है वो सबसे अधिक गर्व का विषय है पिताजी के द्वारा साढ़े तीन एकड़ विद्यालय प्रांगड़ में तीन सौ से अधिक वृक्षों को न सिर्फ़ रोपा गया है बल्कि उनकी बराबर देखभाल भी की जाती है।

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    मई जून की तपती गर्मी में पिताजी स्वयं विद्यालय जाकर पौधों को सींचते हैं एवं हर प्रकार से उनकी सुरक्षा करते हैं, इतना ही नहीं पिताजी विद्यालय के बच्चों में भी प्रकृति प्रेम की भावना को रोपित कर रहे हैं, विद्यालय के बच्चे भी कक्षा के उपरान्त पेड़ो की देखभाल में अपना पूरा योगदान देते हैं, अपने खर्चे पर हर प्रकार से पिता जी इस धरा को हरा भरा बना रहे हैं।

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    इतना ही नहीं वहां पर हम सबके नाम के सुंदर वृक्ष हैं जिसमें हम सभी प्रकृति की गोद में वर्षों वर्ष तक खिलखिलाते रहेंगे, हमारे जन्मदिन या दादा और दादी की पुण्यतिथि हो पिताजी एक वृक्ष अवश्य लगाते हैं और युवा होने तक उसको सुरक्षा देते हैं।प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन है तो हम हैं ये धरा है अथवा आपको दो वर्ष पहले की विकराल स्थिति तो याद ही होगी, कोरोना की विकट परिस्थितियों से बाहर आकर हमें इतनी सीख तो लेनी चाहिए की प्रकृति को अगर बचाया नहीं गया तो हम सांस लेने के लिए कितनी भी बड़ी राशि चुका दें हम एक साँस भी खरीद नहीं सकते।

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    दिन प्रति दिन गर्म होती पृथ्वी और प्रदूषण से ओजोन परत में होते छिद्र इस धरा और सम्पूर्ण मानव जाति के लिए दुःखद है, ये बहुत ही विचारणीय विषय है हम सबको जागने की आवश्यकता है।सिंगल यूज़ प्लास्टिक से लेकर वृक्षारोपण और वृक्षों का संवर्धन हमें अपने जीवन में उतारना ही होगा।प्रकृति प्रेमी पिताजी को पेड़ पौधों से सदैव की अत्यधिक स्नेह रहा है घर की छत पर भी उनके द्वारा संरक्षित एक सुंदर सा बगीचा नेत्र सुखदायी है।मुझे गर्व है कि उनके इस प्रयास से आने वाली पीढ़ियां शुद्ध हवा और वातावरण को जी पाएंगी।
    ◆◆ पेड़ जीवित रहने दो◆◆

    कुछ पेड़ तो जीवित रहने दो
    इस प्राणवायु को बहने दो
    मानव तुम अपनी मानवता
    अब यूँ न हर पल मरने दो,
    कुछ पेड़ तो जीवित रहने दो

    जब प्रकृति ने श्रृंगार किया
    तरु को अपना अलंकार किया,
    जब मानव लालच से हार गया
    हर बार धरा पर वार किया
    ये धरा सुहागन रहने दो
    कुछ पेड़ तो जीवित रहने दो

    चौराहे का वो बूढ़ा बरगद
    जो रहता था हो के गदगद
    जहाँ पंछी राग सुनाते थे
    मानव भी आश्रय पाते थे
    उसे बेदर्दी से काट दिया
    और नई प्रगति का नाम दिया
    अब और कहाँ कुछ कहने को
    कुछ पेड़ तो जीवित रहने दो

    हम नवयुग के प्रहरी बनके
    चलते हैं सीना तन तन के
    हम आज के पल में जीते हैं
    क्या फ़िकर अभी जो पीछे है
    निर्माण नया नित करते हैं
    कल की परवाह न करते हैं
    जो होता है वो होने दो
    कुछ पेड़ तो जीवित रहने दो

    आगे होगा क्या सोचो भाई
    जब धरा करेगी भरपाई
    हर तरु का हिसाब वो मांगेगी
    तब सोई आँखें ये जगेंगी
    जब मेघ नहीं ये बरसेंगे
    हम बूँद बूँद को तरसेंगे
    विष प्राणवायु बन जाएगी
    जब घड़ी प्रलय की आएगी
    सब धुंआ धुंआ हो जाएगा
    तब अर्थ काम नहीं आएगा
    ये बात मुझे अब कहने दो
    कुछ पेड़ तो जीवित रहने दो

    बस देर हुई अब थोड़ी है
    प्रकृति ने आस न छोड़ी है
    हम अंकुर नया लगाएंगे
    माँ को श्रृंगार कराएंगे

    ★★★
    प्राची मिश्रा,कवयित्री

     

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