सतना/अनुपम दहिया।। दशहरा पर रावण को बुराई का प्रतीक मानकर असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक में रावण वध और पुतले का रात में हर जगह जलता हुआ नजर आएगा । वहीं सतना मुख्यालय से महज 25 किलोमीटर दूर कोठी कस्बा के थाना परिसर में रावण आस्था का प्रतीक बना है। यहां लोग दशहरे पर रावण का पुतला जलाने के बजाय उसकी प्रतिमा की विशेष पूजा-अर्चना कर गाँव में अमन-चैन की मन्नतें मांगी जाती है।
रावण को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।दरअसल कोठी में रावण की 10 सिर वाली प्रतिमा है और यहां रमेश मिश्रा परिवार के लोग अपना गोत्र मान करीब 40 वर्ष से पूजा करते चले आ रहे है।
260 वर्ष पुरानी है प्रतिमा, खुद को मानते है रावण का वंशज
कोठी में रावण की 10 सिर वाली इस प्रतिमा के बारे में गांव के बड़े. बुजुर्गों के की मानें तो यह प्रतिमा 260 वर्ष पुरानी है और कोठी रियासत के राजगुरु रहे स्व पंडित श्यामराज मिश्रा ने रावण पूजा की शुरुआत कराई थी। यहां गुजरे जमाने में यहां रामलीला भी होती थी। पंडित श्यामराज मिश्रा के देहावसान के बाद उनके परिवार के सदस्यों ने इस परंपरा को आगे बढाते अब उनके पौत्र रमेश मिश्रा परंपरा को आगे बढाते हुए पिछले 40 साल से बड़े धूमधाम से विजयादशमी के दिन रावण की पूजा करते चले आ रहे हैं रहे हैं। रमेश मिश्रा के मुताबिक, वे गौतम ऋषि के शिष्य माने जाते हैं और गौतम उनका गोत्र है. रावण भी गौतम गोत्र से हैं, इसी वजह से वे रावण के वंशज के रूप में उनकी पूजा करते चले आ रहे हैं।
जय लंकेश के जयकारे, ढोल-नगाड़ों के साथ होती है पूजा
रमेश शर्मा ने बताया कि पहले रावण की पूजा दीपक जलाकर सामान्य रूप से की जाती थी, लेकिन अब हम 40 साल से ढोल-नगाड़े के साथ घर से पूजा की थाली लेकर निकलते हैं और कोठी थाने के अंदर स्थापित रावण की प्रतिमा के पास पहुंचकर उनको जल से स्नान कराकर चंदन, शुद्ध देशी घी के जले दीपक से रावण की आरती की जाती है जनेऊ अर्पित की जाती है। बड़े धूम धाम से उनकी पूजा-अर्चना कर प्रसाद वितरण किया जाता है। दशहरे की शुभकामनाओं का आदान- प्रदान किया जाता है।