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  • ये है दुनिया का सबसे अनोखा अस्पताल, यहां इंसानों का नहीं बल्कि ऊंटों का होता है इलाज!

    आपने दुनिया के सबसे महंगे अस्पताल या कुत्तों या जानवरों के अस्पतालों के बारे में तो सुना ही होगा। लेकिन क्या आपने कभी ऊंट अस्पताल के बारे में सुना है? दरअसल, इस अस्पताल में सिर्फ ऊंटों का इलाज किया जाता है। दुनिया का एकमात्र और अनोखा अस्पताल दुबई में है। इस अस्पताल का नाम दुबई कैमल हॉस्पिटल है। जो अपने आप में दुनिया का अनोखा अस्पताल है।

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    71 करोड़ की लागत से ऊंटों के लिए इस वीआईपी अस्पताल का निर्माण पूरा हो चुका है. इस अस्पताल का निर्माण वर्ष 2017 में शुरू हुआ था। यह अस्पताल अब पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है। इस अस्पताल में यूएई के अलावा ओमान से भी लोग अपने ऊंटों को इलाज के लिए लाते हैं। अस्पताल में इलाज के लिए 65 लोगों का स्टाफ है।

    ये है दुनिया का सबसे अनोखा अस्पताल, इंसानों का नहीं बल्कि ऊंटों का होता है इलाज
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    स्टाफ की इस टीम में विदेशी विशेषज्ञों की एक टीम भी शामिल है. इस अस्पताल में एक साथ कुल 22 ऊंटों का इलाज किया जाता है। इस अस्पताल में ईंटों का इलाज करना आसान नहीं है, क्योंकि यह अस्पताल बहुत महंगा है। इस अस्पताल में ऊंट के ऑपरेशन की न्यूनतम फीस 71 हजार रुपये है, जबकि अल्ट्रासाउंड का खर्च 8 हजार रुपये है।

     


     


    इस अस्पताल में पांच मीटर ऊंची एंडोस्कोपी मशीन लगाई गई है, दुनिया में ऐसी केवल तीन मशीनें हैं। इसके अलावा अमेरिका में दो मशीनें हैं, जिनमें से एक का इस्तेमाल व्हेल के इलाज के लिए किया जाता है, जबकि दूसरी मशीन का इस्तेमाल जिराफ की एंडोस्कोपी के लिए किया जाता है।

    ये है दुनिया का सबसे अनोखा अस्पताल, इंसानों का नहीं बल्कि ऊंटों का होता है इलाज
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    अस्पताल ज्यादातर उन ऊंटों का इलाज करता है जो मैराथन दौड़ के दौरान गिर जाते हैं और उनकी हड्डियां टूट जाती हैं। कई बार ऑपरेशन थिएटर में ईंटों को उल्टा लटकाकर इलाज करना पड़ता है। जो कि बहुत ही मुश्किल काम है.


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    आपको बता दें कि दुबई में होने वाली ऊंट दौड़ पूरी दुनिया में काफी लोकप्रिय है. यहां रेस के विजेता को अरबों रुपए का इनाम दिया जाता है। उसी वर्ष, प्रतिष्ठित अल मरमूम हेरिटेज फेस्टिवल में एक ऊंट दौड़ का आयोजन किया गया, जिसमें विजेता ऊंट मालिकों को लगभग रु। इनाम के तौर पर 2.86 अरब रुपये दिए गए.

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  • Ujjain News:तिरछे पैर वाले बच्चों का अब उज्जैन जिला अस्पताल जांच के बाद तीन चरणों में होगा इलाज

    जिला अस्पताल में अब तिरछे पैर वाले बच्चों का भी उपचार हो सकेगा। अस्पताल में बने डीआइसी केंद्र में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत मिरेकल फिट इंडिया द्वारा क्लब फुट क्लिनिक का शुभारंभ किया गया। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. संजय शर्मा ने बताया कि तिरछे पैर वाले बच्चों के विशेष उपचार की सुविधा अब जिला अस्पताल में भी उपलब्ध हो सकेगी। अस्पताल में बने डीआइसी केंद्र में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत मिरेकल फिट इंडिया द्वारा क्लब फुट क्लिनिक का शुभारंभ किया गया। क्लिनिक में तिरछे पैर वाले बच्चों का इलाज होगा। तिरछे पैर वाले बच्चों का आपरेशन भी किया जा सकेगा।

    इसके अलावा उन्हें विशेष प्रकार के जूते भी निःशुल्क दिए जाएंगे। क्लिनिक में बच्चों की जांच के बाद तीन चरणों में इलाज किया जाता है। पहला चरण कास्टिग, दूसरा चरण टेनोटॉमी और तीसरा चरण ब्रेसिंग का होता है। डाक्टरों का कहना है कि जिन बच्चों में तिरछे पैर की समस्या है वह प्रति गुरुवार जिला अस्पताल परिसर में बोहरा वार्ड के पीछे बने डीआइसी केंद्र में आकर इस संबंध में जानकारी व बच्चों का उपचार करवा सकते है।

  • मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं में मैहर सिविल अस्पताल को मिला द्वितीय स्थान

    भोपाल।।सतना जिले के मुख्य चिकित्सा एवम स्वास्थ्य अधिकारी ,सिविल सर्जन,साथ जिले की प्रसिद्ध महिला चिकित्सा विशेषज्ञ डा.अवधिया एवम जिला कार्यक्रम प्रबंधक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन इकाई सतना डा.निर्मला पांडेय के द्वारा मातृ स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतर कार्य करने के लिए ,स्वास्थ्य मंत्री ,प्रमुख सचिव स्वास्थ्य,मिशन संचालक के द्वारा मैहर सिविल अस्पताल को मध्य प्रदेश में द्वितीय स्थान दिया गया जबकि

    प्रथम स्थान उज्जैन जिला अस्पताल को दिया गया मैहर सिविल अस्पताल की इस उपलब्धि पर विधायक नारायण त्रिपाठी सिविल अस्पताल पहुंचकर मातृत्व विभाग में अपनी सेवाएं देने वाली डॉक्टर एस बी अवधिया डॉक्टर सीमांका गर्ग ओमना अब्रहम मीना पटेल अब्दुल साहिद राजकुमारी पटेल पूजा शुक्ला को साल श्रीफल देकर सम्मानित किया मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी ने सभी के उज्जवल भविष्य की कामना की।

  • मेडिकल आफीसर नदारद, फार्मासिस्ट और स्टाफ नर्स के भरोसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बरौंधा,अव्यवस्था की मिसाल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

    सतना।।(बरौंधा) रिपोर्ट सतेंद्र कुमार श्रीवास्तव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है स्वस्थ भारत समृद्ध भारत बने। वैसे केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन सरकार भले ही स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए प्रयासरत हो एवं स्वास्थ्य संबंधित ग्रामीण अंचल में तमाम तरह की योजनाएं चलाई जा रही हूं लेकिन शासन के नुमाइंदे पानी फेरते नजर आ रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बरौंधा में देखा जा सकता है। जहां मेडिकल ऑफिसर के पद पर डॉक्टर विकास सिंह पदस्थ है लेकिन अस्पताल आते हैं तो सिर्फ एक माह में उपस्थिति पंजी में हस्ताक्षर करने।


    सतना जिले के मझगवां तहसील अंतर्गत बरौंधा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ मेडिकल आफीसर विकास सिंह के मनमानी का दंश झेल रहा मध्य प्रदेश का तराई अंचल बता दें कि मध्यप्रदेश का सतना जिला उत्तर प्रदेश के बॉर्डर से लगा हुआ है वही बॉर्डर से सटा हुआ इलाका बरौंधा है जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है लगभग सैकड़ों गांव जुड़े हुए हैं इन गांवो के लोगो का प्राथमिक उपचार के लिए शासन से एक मात्र बरौंधा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है जहां पर 24 घण्टे सातों दिन प्रसव सेंटर है जहां डाक्टर के न रहने पर नर्सों को प्रसव कराने में भारी दिक्कतें होती न सही तरीके से जांच हो पाती है कई नवजात शिशु अपनी दम तोड़ चुके हैं सही उपचार न होने से इतना बस नहीं दिन भर में बीमारी से ग्रसित सैकड़ों मरीज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चक्कर लगाते हैं किसी तरह डाक्टर साहब से मुलाकात हो जाए

    जिससे उनकी बीमारी का सही इलाज हो सके महीनों महीनों भर पदस्थ डॉ विकास सिंह के दर्शन नहीं होते जिससे कई मरीजों के बीमारी से दम घुटते रहते हैं कई मरीज झोला छाप डॉक्टर के शिकार हो जाते हैं सही उपचार न होने से दुनिया को अलविदा कह देते हैं।

    जगह-जगह बिखरा पड़ा कचरा
    अस्पताल परिसर के अंदर बालों में सुविधाओं के बेड के नीचे एवं बाहर जगह जगह कचरा बिखरा पड़ा रहता है हर जगह गंदगी का आलम है।
    प्रसूताओं को चद्दर तक नसीब नहीं
    अस्पताल के वार्ड में देखा गया कि प्रसूताओं को बेड में बिछाने के लिए एक चद्दर तक नसीब नहीं हो रहा वेड में बिना चद्दर के ही प्रसूताओं को लेटना पड़ता है और ना ही उन्हें कंबल मिलता

    बिना डॉक्टर और बिना जांच के कैसे होता होगा प्रसव यह एक बड़ा सवाल है
    प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बरौंधा बीमांक सेंटर भी है जहां 24 घंटे प्रसव सुविधा उपलब्ध है लेकिन सिर्फ नाम के लिए। अब सबसे बड़ा सवाल यह है की जब यहां डॉक्टर आते ही नहीं और कोई लैब टेक्नीशियन भी नहीं है तो फिर बिना डॉक्टर और बिना जांच के सुरक्षित प्रसव कैसे होता होगा।

    15 से 20 दिन में आते हैं मेडिकल ऑफिसर
    कई बार ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी पीएचसी की सुविधाओं पर सुधार नहीं हो पा रहा है। कहने का मतलब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बरौंधा भगवान भरोसे चल रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि पदस्थ डॉक्टर विकास सिंह 20 दिनों में अस्पताल के चक्कर लगाते हैं और उपस्थिति रजिस्टर में पूरे माह के हस्ताक्षर करके चले जाते हैं।

    कई बार ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी नहीं हो रहा सुधार
    बताया गया कि इस पीएचसी में प्रसव को लेकर आने वाली ग्रामीण महिलाओं की बिना जांच के ही प्रसव कराया जाता है जो किसी खतरे से कम नहीं है ग्रामीणों का कहना है कि इस संबंध में मझगवां बीएमओ को 26 फरवरी को आवेदन भी दिया गया था लेकिन इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है जो गंभीर बात है।

    प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बरौंधा भगवान भरोसे चल रहा है, यहां पर कागजों में डॉ. विकास सिंह पदस्थ है जो 15-20 दिन मे सिर्फ हस्ताक्षर करने पहुंचते हैं। लगभग सैकड़े भर गांव की ग्रामीणों की महिलाओं का प्रसव विना जांच के होता है जिससे जच्चा बच्चा दोनों को खतरा रहता है। इस संबंध मेे मझगवा बीएमओ को 26 फरवरी को आवेदन मेरे द्वारा दिया गया था पर अभी तक इस संबंध पर साहब द्वारा कुछ पहल नहीं की गई।

    राजाराम यादव, आप जिला संगठन सचिव सतना

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