Detailed discussion on Indian knowledge tradition in the central auditorium of AKS

  • Satna News :एकेएस के केंद्रीय सभागार में भारतीय ज्ञान परंपरा पर विषद चर्चा

    सतना,मध्यप्रदेश।। भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा से पूर्व परंपरा अनुसार मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन देवार्चन एवं माल्यार्पण के साथ अक्षत,दीप,सुगंधित धूप के साथ किया गया । इसके पश्चात विश्वविद्यालय के कुल गीत का गायन उनके समक्ष किया गया। अतिथियों का पुष्प गुच्छ से स्वागत मंच पर किया गया। मंच पर कुलपति प्रो.बी.ए.चोपडे, विश्वविद्यालय के डायरेक्टर अवनीश कुमार सोनी, प्रो. जी.सी. मिश्रा, डॉक्टर एस. एस.तोमर, प्रो.आर.एस. त्रिपाठी, इंजीनियर आर.के.श्रीवास्तव, प्रो. विपिन व्यवहार,सूर्यनाथ सिंह गहरवार उपस्थित हैं।

    अतिथि परिचय देते हुए सूर्यनाथ सिंह गहरवार ने सामाजिक चेतना और ज्ञान परंपरा पर उद्बोधन देने के लिए सभा गार में पधारे माननीय प्रोफेसर भरत शरण सिंह जी के जीवन परिचय से सभागार को परिचित कराया। उन्होंने बताया कि वह जूलॉजी के प्रोफेसर रहे हैं इसके साथ ही उनका आध्यात्मिक लगाव जग जाहिर है इसके पश्चात कार्यक्रम की अगली कड़ी में इंजीनियर आर. के. श्रीवास्तव ने विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर एकेडमिक विकास के विभिन्न पड़ावों एवम गतिविधियों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने नैक और स्टूडेंट के लिए हो रही अलग-अलग गतिविधियों के साथ विश्वविद्यालय के नूतन कदमों की भी चर्चा की।प्रो. विपिन व्योहार ने मंच से प्राचीन परम्पराओं का जिक्र करते हुए अतीत की सुनहरी यादों का खाका खींचा। वक्त की नाव पर सवार होकर आए परिवर्तनों की और इंगित करते हुए उन्होंने कहा की भारतीयों का भाईचारा,सम्मान,स्नेह, प्रेम और वसुदेव कुटुंबकम की भावना कही तिरोहित हो रही है। उन्होंने मानवीय संवेदनाओं पर जागरूक रहने, समाज परिवार और देश को जागृत रहने का आह्वान किया। सामाजिक चेतना और ज्ञान परंपरा को मानवीय मूल्यों के साथ जोड़कर समाज की परिधि में पनप रहे असंवेदनशील विचारों पर दृष्टि डाली। तुलसी,पीपल, बेल,नीम,आम के महत्व के साथ माता पिता की वंदना,प्रकृति के सानिध्य के साथ दादी नानी की परंपराओं,गुरु महत्व पर सारगर्भित चर्चा की। समाज के संस्कार, त्योहार,सहजीवन का महत्व उन्होंने रेखांकित किया।कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे श्री भरत शरण सिंह, अध्यक्ष, निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग ने कहा कि श्रेष्ठ बनो और सभी को श्रेष्ठ बनाओ। उन्होंने कहा कि समय के प्रवाह पर सवार होकर हमें उज्जवल परिवर्तनों को आत्मसात करते रहना है और सकारात्मक कदमों को अपनी आदत में शामिल करते जाना है। क्योंकि समय और धाराएं किसी की प्रतीक्षा नहीं करती। उन्होंने भारत में विज्ञान की उज्जवल परंपरा पर सारगर्भित उदबोधन दिया। उन्होंने कहा की हमारी भूमिका रामकृष्ण परमहंस जैसी है जैसे उन्होंने स्वामी विवेकानंद को सामान्य बालक से विश्व पटल पर अंकित विश्व पुरुष के रूप में परिवर्तित किया। विकसित भारत में स्व का भाव आना चाहिए।हमारी विरासत को हमारी पाठ्य पुस्तकों में स्थान मिलना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी हमारी प्राचीन विरासत और उसकी समृद्ध धरोहर आने वाली पीढियों तक पहुंच सके। उन्होंने जीवन पद्धति,संस्कार,पुरानी परंपराओं की अनूठी बातों और नवीनता के बीच सामंजस्य की बात कही।भारतीय जन में अपठित ज्ञान की भरमार है जो संवेदनाओं से भरी है बड़े बुजुर्गों का सम्मान,बराबर वालों के साथ मित्रता का भाव और बच्चों के साथ स्नेहिल स्वभाव सिखाया नही जाता यह भारतीय भाव में है। उन्होंने विभिन्न शास्त्रों का जिक्र करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्धि का उदाहरण दिया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के समस्त संकायों के डीन, डायरेक्टर्स और फैकल्टी मेंबर्स उपस्थित रहे।कार्यक्रम के बाद एक पेड़ मां के नाम के तहत विश्वविद्यालय परिसर में एक पेड़ रोपित किया गया।कार्यक्रम का संचालन डीन लॉ विभाग डॉ. सुधीर जैन ने किया

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