अपने नए शो मिठाई के साथ लौट रही हैं देबत्तमा साहा, कहा- महिलाओं की अहमियत बताना है जरुरी

हर जगह समानता लानी होगी। ‘शौर्य और अनोखी की कहानी’ शो से अपनी पहचान बनाने वाली अभिनेत्री देबत्तमा साहा चार अप्रैल से जी टीवी पर आरंभ हो रहे शो ‘मिठाई’ में शीर्षक भूमिका में नजर आएंगी। शो में भले ही उनके किरदार को पकवान और मिठाइयां बनाने का विशेषज्ञ दिखाया गया हो, लेकिन निजी जीवन में देबत्तमा को रसोई के कामों में दिलचस्पी नहीं है।

पुराने किरदार से निकलना मुश्किल

इस शो से जुड़ने से पहले लिए गए ब्रेक के बारे में देबत्तमा कहती हैं, ‘अपने पिछले शो शौर्य और अनोखी के कहानी के बाद मैंने थोड़ा ब्रेक लिया, क्योंकि मैं अनोखी के किरदार से बाहर ही नहीं निकल पा रही थी। ऐसे में किसी नए किरदार को उसकी जगह देने के लिए मुझे थोड़ा वक्त चाहिए था। वैसे जो आपकी किस्मत में होता है, वह होकर ही रहता है। इसी बीच एक दिन मेरी मम्मी ने कहा कि बेटा देख लो, जो ऑडिशन हो रहे हैं, दे दो। उसके बाद ये मेरा पहला ऑडिशन था, तब मुझे शो का नाम भी नहीं बताया गया था। ऑडिशन निर्माताओं को पसंद आया। जब मुझे यह पता चला कि मैं इसके लिए चुन ली गई हूं तो मैंने आश्चर्य से अपने सिर पर हाथ रख लिया था कि ये तो अचानक से काम मिल गया। मैं धीरे-धीरे मिठाई के करीब जा रही हूं। अब मुझे इस किरदार से भी प्यार होने लगा है।

खाना बनाना मुश्किल

व्यक्तिगत तौर पर रसोई में काम करने को लेकर देबत्तमा कहती हैं, (हंसते हुए) किचन के बारे में तो पूछिए ही मत। मैं सब कुछ कर सकती हूं, लेकिन कुकिंग (खाना बनाना) और ड्राइविंग दो चीजें नहीं कर सकती हूं। जब आपका पहला अनुभव ही बहुत बुरा हो तो आप उस काम के लिए बने ही नहीं हो। कुकिंग के मामले में मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जब कभी मैं कुकिंग करती हूं तो उस वक्त किचन में और कोई नहीं होना चाहिए। तब मैं आराम से सब कुछ कर सकती हूं और यह मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि जो भी बनेगा अच्छा बनेगा। मैैं काफी अच्छी बनाती हूं, लेकिन कभी-कभी ही बनाती हूं।

दादी से जुड़ी हैं वृंदावन की यादें

यह शो भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा की पृष्ठभूमि पर आधारित है। ऐसे में मथुरा और वृंदावन दौरे से जुड़े अपने अनुभवों के बारे में देबत्तमा कहती हैं, मेरे घर में गोपालजी का एक मंदिर था। मेरी दादी वहां अक्सर भजन-कीर्तन करती थीं। अब जब मैंने इस शो के सिलसिले में मथुरा-वृंदावन जाकर गोपालजी के गीत गाए तो मुझे दादी के साथ बिताए सारे पल याद आ गए। गोपालजी से जुड़ी हर चीज देखते ही, मुझे सबसे पहले दादी की याद आती है। उनकी जुबान से मथुरा-वृंदावन का नाम बहुत बार सुना था, पर वहां जा नहीं पाई थी। अब जब मुझे उन जगहों पर जाने का मौका मिला तो लगा जैसे वह मेरे साथ हों। मथुरा की क्षेत्रीय भाषा समझने के लिए मैंने वहां के क्षेत्रीय लोगों से खूब बातें कीं और उनकी भाषा शैली पकड़ने की कोशिश की।

पिता को इस बात का था डर

देबत्तमा के पिता नहीं चाहते थे कि वह टीवी और अभिनय की दुनिया में आएं। वह कहती हैं, मेरे पापा बहुत प्यारे इंसान हैं, जैसे हर पिता अपने बच्चों के भविष्य को लेकर थोड़ा चिंतित होता है। वैसे वह भी अपनी बेटी के करियर को लेकर चिंतित थे। मेरा परिवार इस इंडस्ट्री से कोसों दूर था तो वह अपनी बेटी को लेकर डरे हुए थे। यही सोचकर उन्होंने मुझसे कहा कि नहीं तुम यह सब नहीं करोगी। उनको लगता था कि मेरा इन सब चीजों में करियर नहीं बनने वाला है। मैं असम के सिलचर शहर से हूं, वहां लोग सिंगर और एक्ट्रेस बनने के सपने ही नहीं देखते हैं, बल्कि ऐसी बातें सुनकर हंसते हैं। हालांकि जब पापा को एक बार मुझ पर विश्वास हो गया कि मैं यह कर सकती हूं तो उन्होंने मुझे अपने निर्णय लेने के लिए धीरे-धीरे स्वतंत्र छोड़ दिया।

सोच में बदलाव आना है जरूरी

एक बेहतर दुनिया के लिए देबत्तमा महिलाओं और पुरुषों में समानता जरूरी मानती हैं। उनका कहना है, हमारा शो एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो अपने पिता के निधन होने के बाद अपनी मेहनत से पिता द्वारा छोड़ी आलू जलेबी की विरासत को दोबारा लोकप्रिय बनाने की कोशिश में है। हमारे समाज में महिलाओं की अहमियत बताना बहुत जरूरी है। महिला हलवाई हमारे समाज में बहुत कम सुनने को मिलती हैं। अभी भी कई ऐसे पेशे और काम हैं, जिन्हें सिर्फ लड़कों के लिए माना जाता है। अभी भी समाज का एक बड़ा हिस्सा सोचता है कि घर के काम सिर्फ लड़कियों को ही करना चाहिए। इस सोच में बदलाव जरूरी है। हमें हर जगह महिला पुरुष समानता लानी होगी। लड़कियों को भी बराबरी का मौका मिलने लगे तो क्या दुनिया हो जाएगी।

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