बहरा सिस्टम : “कानों तक नही पहुच रही सड़क किनारे पड़े बेजुबान जानवर की दर्द भरी किलकारी..”

इंसान भी जानवर बन जाते हैं,
जब वो लालच और घृणा से भर जाते हैं.

दरअसल इस लेख को पढ़ने के बाद आपको यह शायरी बिल्कुल सटीक समझ मे आएगी क्योंकि इसमें में कुछ ऐसा ही हैं इसमे इंसान की इंसानियत मरती हुई दिखाई पड़ती हैं।घने आबादी के बीच रहने वाले हम इन इंसान को जब दर्द होता है यू मानो देखने वालों की भीड़ सी लग जाती है साथ ही दुनिया भर के शा. सुविधा भी मुहैया होती है मगर जब बात जानवरों की आती हैं तो हम इंसान भी उस जानवर से बदत्तर हो जाते हैं जानवर पालने में हम इंसान बड़ी दिलचस्पी दिखाते हैं मगर सड़क किनारे घायल पड़े बेजुबान को अनदेखा कर के निकल लेते है कितनी शर्मसार बात हैं न।

आज के युग में दिन प्रतिदिन इंसानियत दम घोटती दिखाई दे रही है।संलग्न वीडीओ के बात की जाए तो तस्वीर मध्यप्रदेश (madhyapradesh) सतना (satna) जिले अमरपाटन के पुरानी बस्ती की है देर रात तकरीबन दस बजे का नजारा हैं मध्यम ठंड का सितम हैं तभी जैसे ही बिस्तर में गया तो एक रोने की आवाज बड़े जोरो से कानो में आ रही थी काफी देर तक ये सोच में रहा की आसपास किसी नन्हे नौनिहाल के रोने की आवाज मेरे कानों में विलग रही हैं मगर ढलती रात के साथ आवाज और तेज होती गयी जब बाहर निकल कर देखा तो पूरे मोहल्ले में सन्नाटा पसरा हुआ था।

आसपास कोई नही था फिर गौर से आ रही आवाज को सुना तो वो आवाज एक बेजुबान जानवर की थी जो दर्द से कलह रहा था उसकी दर्द भरी चीखे ये बता रही थी वो कितनी बड़ी तकलीफ से गुज़र रहा है मगर बाहरे आज के दौर का प्रशासनिक सिस्टम और आज के युग की इंसानियत घनी आबादी वाले बस्ती में किसी के कानों में ये आवाज नही जा रही थी मैं प्रयास तो किया कि इस का उपचार करवा सकू पर मध्यप्रदेश के हर विभाग की हालत सुधर सकती है पर विटनरी विभाग हमेशा से अंधेरे में ही था जाने कितने जानवर आयेदिन मौत के आगोश में समा जाते हैं मध्यप्रदेश के छोटे से शहर अमरपाटन में आयेदिन कितने माशूम बेजुबान जानवर उपचार न मिलने के चलते मौत के आगोश में समा जाते हैं।
दर्द भरी ये किलकारी मुझे परेशान कर रही थी मैं ठंड को देखते हुए 1 बोरे उस घायल कुत्ते को ढंक दिया जिससे उसको सायद थोड़ा आराम मिल जाये आखिरकार कुछ घण्टे बाद उस माशूम जानवर को थोड़ा राहत मिली औऱ वो भी सो गया, जब मैने आसपास पता किया तो पता चला कि उस कुत्ते को पिछले 4 दिन लखवा की तरह आधे शरीर मे कोई बीमारी हो गयी है जिस वजह से घसीटता हुआ चल रहा है ओर 4 दिन से रोजाना रात को इस तरह से दर्द से कलहते हुए सिसिक रहा है मगर इस दौर में इंसानियत न होने के चलते वो बेचारा मरने के कगार पर आ गया है। हम भूल चुके है कि जानवर भी हमारे प्रकति का एक अंश हैं अगर इस प्रकति को सुरक्षित रखना है तो इनकी हिफाजत करना हमारा कर्तव्य होना चईये हमारे सिस्टम को चईये की इसकी देखरेख करने वाले जिम्मेदार घर मोहल्ले जा जाकर इनकी देखरेख करे एक टोलफ्री नम्बर निर्धारित किया जाना चाहिए कही कोई बेजुबान घायल अवस्था मे हो तो उसको उपचार मिल सके तभी हमारे देश का कल्याण होगा इस शायरी के साथ मैं इस लेख को खत्म करना चाहूंगा क्योंकि आज दशा कुछ इसी प्रकार है
जब इंसान से इंसानियत खो जाती है
उसकी शख्सियत जानवर सी हो जाती है.

Exit mobile version