वसंत
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भारतीय छः ऋतुओं मे वसंत एक ऋतु है जो सर्वप्रिय है। इसे ऋतुराज भी कहा जाता है। वसंत सर्दी पश्चात और गर्मी पूर्व की ऋतु है. रबी फसल अपने पूर्ण शवाब पर रहती है। आम मे मंजरी (बौर), वृक्षों मे नवपल्लव, जंगलों में फूलों की भीनी सुंगध रहती है। वसंत को कामदेव का पुत्र माना गया है दूसरे रूप में शृंगार श्रेष्ठ है। बासंती रंग भी है जो पीला/ नारंगी है। पलाश के फूल टेसू के रंग का. उसी टेसू से होली के रंग बनाए जाते थे। मतिराम के अनुसार वसंत :-
भौंर भाँवरें भरत हैं, कोकिल कुल मँडरात।
या रसाल की मंजरी, सौरभ सुख सरसात।।
उत्सवों मे श्रेष्ठ वसंतोत्सव इसी ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। फागुनी बयार के साथ होली हुडदंग, ढोलक-नगड़िया के थाप से फाग-फजीहत होती है। जो सर्वत्र उल्लासपूर्ण वातावरण बनाती है। इसी ऋतु मे श्री राम का प्राकट्य (रामनवमी) हुआ तो श्री कृष्ण की लीलाएं भी इसी वसंतोत्सव पर सर्वाधिक हैं। महादेव शिव शंकर की महाशिवरात्रि के तो क्या कहने जिसमे गौरीशंकर का विवाह मनाया जाता है।
वसंत (शृंगार) पर सभी काल के कवियों ने खूब कलम चलाई है। :-
सकल वन फूल रही सरसों।
बन बिन फूल रही सरसों……
‘अमीर खुसरो’
वीरों का कैसा हो बसंत?
आ रही हिमालय से पुकार…….
‘सुभद्रा कुमारी चौहान’
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर…….
‘अटल जी’
कूलन मे क्यारिन मे कछारन मे कुंजन में,…………
‘पद्माकर’
आशय यह कि देश के सभी कवियों ने सूरदास, तुलसीदास, मैथिलीशरण, सुमित्रानन्दन, नागार्जुन, महादेवी, भारतेंदु हरिश्चंद्र, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर प्रसाद, हरिवंशराय…….. आदि आदि सभी ने बसंत पर अपने उद्गार प्रस्तुत किए हैं।
वसंत जहां एक ओर उछाह का वातावरण बनाता है युवक-युवतियों का मन गगन तक उच्छाता है, नव कल्पनाओं मे सरोबार रहता है तो दूसरी ओर विरही और विरहिणी के लिए अति कष्टदायक भी होता है। एक कहावत के माध्यम से समझ सकते हैं :-
गरीबी उत्तम दुक्ख है, कर्जा दुक्ख महान।
रोग दुक्ख इनसे बड़ा, विरह नरक सम जान।।
धन्यवाद
अजय सिंह परिहार