मानो या ना मानो : इन दिनो देश प्रशासनिक आरजकता के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा..

मानो या ना मानो : इन दिनो देश प्रशासनिक आरजकता के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है।इसीलिये कहीं सामूहिक दुष्कर्म की शिकार पीडि़ता का अंतिम संस्कार रात मे ही डीजल छिड़क कर कर दिया जाता है.

Image credit by satna times

तो कही चोरी के संदेहीं को गोली से उड़ाया दिया जाता हैफिलहाल प्रशासनिक आराजकता का एक मामला उत्तरप्रदेश के गोरखपुर का भी है जहां पुलिसिया पिटाई से एक कारोबारी की मौत हो जाती है.

आपको बतला दें कि दो तीन वर्ष पहले 27 सिंतंबर की रात मध्यप्रदेश मे सतना जिले के सिंहपुर मे चोरी के एक संदेही की मौत वहां के सब इंस्पेक्टर की सर्विस रिवाल्वर से हो गई थी।इस मामले मे पुलिस तीन घंटे तक लाश को उपचार के नाम पर अस्पताल..अस्पताल घुमाती रही और इस दौरान जिले के पुलिस कप्तान लगातार गुमराह करने वाली जानकारियां देते रहे ,बाद मे पुलिस ने घटना के लिये मृतक को ही जिम्मेदार ठहराते हुये उसका अंतिम संसकार भी करवा दिया था।

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कुछ इसी तरह की प्रशासनिक अराजकता का नजारा कभी उत्तरप्रदेश के हाथरस मे भी देखने को मिला था।यहां सामूहिक दुष्कर्म की शिकार युवति की फरियाद को अनसुना कर दिया गया था।जबकि पीड़िता चीख चीखकर कहती रह ग ई कि उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है

मगर पुलिस नकारती रही और जब पीड़िता की मौत हो ग ई तो रात मे ही डीजल छिड़क कर उसका अंतिम संसकार कर दिया गया।दर असल बेलगाम अफसरशाही और भ्रष्ट व्यवस्था ने बैधानिक मर्यादायों की सभी सीमाओं को तोड़ दिया हैं।इसकी एक बड़ी वजह यह है कि वेईमानी की बुनियाद पर खड़ी राजनीति ( विधायिका ) प्रशासनिक अराजकता को रोक पाने मे खुद को असहाय महसूस कर रही है।

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लिहाजा चाहे मोदी जी हों या फिर योगी जी वे देश को कानून के मुताबिक नही चला पा रहे है।बल्कि यहां का अहंकारी और अराजक प्रशासनिक अमला कानून को अपने हिसाब से चला रहा है।और इस तरह से मुल्क का आम आदमी प्रशासनिक अराजकता का शिकार होकर रोज ही बे मौत मारा जा रहा है ……

 

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