11अगस्त : खुदीराम बोस ने 18 वर्ष की उम्र में देश की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दे दी।

11 अगस्त : आज का दिन इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि आज के ही दिन वर्ष 1908 में मां भारती के वीर सपूत महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी ।

खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश राज का विरोध किया था खुदीराम बोस का जन्मदिन 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल में मिदनापुर  जिले के बहुवैनी नामक गांव में हुआ था उनके पिता का नाम ‌‌ बाबू त्रैलोक्यनाथ  बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था , उनका जन्म कायस्थ परिवार में हुआ था।

खुदीराम  बोस ने पढाई छोड़ दी थी

खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी की नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े।

निडर खुदी राम बोस।

खुदीराम बोस ने डर को कभी अपने पास सटने नहीं दिया 26 फरवरी 1906 को भी सुंदर बंगाल नाम एक इश्तिहार बाटते हुए पकड़े गए लेकिन उसके बाद वह पुलिस को चकमा देकर भाग निकले।
6 मई 1906 को पुलिस ने उन्हें दोबारा पकड़ लिया लेकिन इस बार उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया । लेकिन ब्रिटिश पुलिस की यह भूल यह थी क्योंकि खुदीराम उस उम्र में भी जानते थे कि उन्हें क्या करना है अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध उनका जुनून बढ़ता गया और 6 सितंबर 1906 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर आंदोलनकारी ने जिस घटना को अंजाम दिया था उसमें खुदीराम बोस प्रमुख थे।

घटना जिसके कारण खूदीराम बोस को फांसी दी गई

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या करने की योजना बनाई , ऐसा कहा जाता है कि मजिस्ट्रेट क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ फैसला सुनना चाहता था खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की बग्गी का यूरोपीय क्लब के गेट के सामने आने तक इंतजार किए फिर उसे बम से उड़ा दिया लेकिन यह संयोग ही था कि उसमें किंग्सफोर्ड नहीं था ।  खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त 1908 को उन्हें फांसी दे दी गई थी , खुदीराम बोस हाथ में गीता लेकर खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे।

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