31 जुलाई : आतंकवादी और क्रांतिकारी में फर्क होता है. क्रांतिकारी प्रतीकात्मक कार्य करते हैं, अपने विरोध को रजिस्टर करने के लिए। वो आतंक से किसी को डराना या धमाका नहीं चाहता… यह डायलॉग फिल्म सरदार उधम सिंह का है. जो की क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह के जीवन पर फिल्माई गई है. स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देकर मां भारती के गौरव को गौरवान्वित करने वालों की सूची में एक नाम सरदार उधम सिंह का भी है. सरदार उधम वही है जिन्होंने लंदन में घुसकर जलियांवाला बाग के मुख्य आरोपी जनरल डायर को गोली मार उस भयानक नरसंहार का बदला लिया था.
सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब प्रांत के सुनान गांव में हुआ था. बचपन में सरदार उधम को सभी शेर सिंह का कर पुकारते थे. उधम के बचपन में ही उनके माता और पिता का निधन हो गया था. उसके बाद से सरदार उधम को भाई मुक्तासिंह के साथ अनाथालय में रहना पड़ा. इसी अनाथालय में ही बालक शेर सिंह का नाम बदलकर सरदार उधम सिंह होगया. अनाथालय में उनकी जीवन शैली सही चल रही थी कि इसी बीच उनके भाई का भी देहांत हो गया. सरदार उधम अब पूरी तरह से अनाथ हो चुके थे.
13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड को सरदार उधम ने अपनी आंखों से देखा था. इस हत्याकांड में हुई निर्दोषों की हत्याओं को देख सरदार उधम का हृदय क्रोध से भर गया. और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी को हाथ में ले प्रतिज्ञा की वह इस हत्याकांड का बदला जनरल डॉयर से अवश्य लेंगे. इसके बाद से उनके जीवन का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला ले स्वतंत्रता संग्राम में एक नई क्रांति का संचार करना था.
अपने लक्ष्य को पूरा करने के उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की.सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे. वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में को छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली.अब वीर क्रांतिकारी, माइकल ओ’डायर को ठिकाने लगाने के लिए सही मौके का इंतजार करने लगे.
13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी. जहां माइकल ओ’डायर भी वक्ताओं में से एक था। मौके की तलाश में बैठे उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए. उन्होंने एक मोटी किताब में अपनी रिवॉल्वर छिपा रखी थी. इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में काट रखा था.
बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ’डायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां माइकल ओ’डायर को लगीं जिससे उसकी मौके पर ही मौतहो गई. उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया. जेल पर पुलिस अधिकारियों ने उधम पर बहुत जुल्म किए. उधम पर मुकदमा चलाया गया. इसके बाद 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहरा उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई. 31 जुलाई सन 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.
सरदार उधम के इस बलिदान ने अंग्रेजों के मन में भय पैदा कर दिया था और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार भी कर दिया था. भारत के युवा क्रांतिकारियों के लिए सरदार उधम का यह बलिदान प्रेरणा का स्त्रोत बन गया था. आज अमर शहीद सरदार उधम सिंह की 84 वीं पुण्यतिथि है इसलिए अंत वी एस मौर्य की प्रसिद्ध पंक्तियों के साथ ” शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,वतन पे मरने वालों का यही बाकीं निशां होगा”. शत-शत नमन वीर सरदार उधम सिंह को.