काशी के दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से में स्थित जक्खिनी से करीब पांच किमी पहले औढ़े गांव में गुप्तोत्तर काल का एक दुर्लभ शिवलिंग मिला है। यह शिवलिंग एक भवन निर्माण के लिए नींव की खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ। यह पहला ऐसा शिवलिंग है जिसमें चार, आठ और 16 कोण क्रमश: नीचे से ऊपर की ओर उकेरे गए हैं। इससे पूर्व मिले शिवलिंगों में चार और आठ कोण मिले हैं अथवा आठ और सोलह कोण।
यह शिवलिंग बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विनोद कुमार जायसवाल को उनके एक विद्यार्थी के माध्यम से प्राप्त हुआ है।
शिवलिंग 19 सौ साल प्राचीन
इस दुर्लभ शिवलिंग के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए प्रो. जायसवाल ने वयोवृद्ध पुराविद् प्रो. मारुतिनंदन प्रसाद तिवारी से संपर्क किया। प्रो. तिवारी ने बताया कि ऐसे शिवलिंगों का निर्माण 325 ईस्वी के बाद आरंभ हो गया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार शिवलिंग में चार कोण ब्रह्मा की शक्ति के प्रतीक माने गए हैं। शिवलिंग के आठ और 16 कोण विष्णु तथा गोल भाग महेश की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ही शिवलिंग में चार, आठ और 16 कोण का होना अपने आप में दुर्लभ है। इसकी उम्र अधिकतम 19 सौ साल हो सकती है। डॉ. विनोद कुमार जायवाल ने बताया कि इस शिवलिंग के बारे में अभी अध्ययन किया जा रहा है। देश के करीब आधा दर्जन पुराविदों को इस शिवलिंग की तस्वीर भेजी गई है।
ये हैं इस शिवलिंग की विशेषताएं
इस शिवलिंग की कुल लंबाई 21 इंच है। चतुष्कोण की लंबाई सात इंच, अष्ठकोण की लंबाई तीन इंच, षोडषकोण की लंबाई चार इंच है। गोलाई का भाग सात इंच है। चतुष्कोण को भूमि भाग, अष्टकोण और षोडष को मिला कर वेदी भाग और गोलाई वाले हिस्से को पूजा भाग कहा जाता है। कला की भाषा में क्रमश: ब्रह्मपीठ, अष्ट और षोडष को मिला कर भद्र पीठ और गोलाई वाले हिस्से को भोग पीठ कहते हैं। इन तीनों को तीन लोक (स्वर्ग, धरती, पाताल), तीन गुण (सत, रज, तम), तीन काल (भूत, वर्तमान, भविष्य) और तीन वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद) का प्रतीक माना गया है। ऐसे शिवलिंगों का उल्लेख शिल्प कला क्षेत्र के सु-प्रभेदागम साहित्य में मिलता है।