Satna Times Special Story : दिव्यांग क्रिकेटर ब्रजेश के संघर्ष की कहानी, पोलियो से ग्रसित मगर हौसले को कोई क्षति ग्रस्त नही कर पाया

Satna Times : बृजेश द्विवेदी सदस्य ,भारतीय दिव्यांग क्रिकेट , मध्य प्रदेश मे निवासरत है।ब्रजेश की कहानी भी हर उस संघर्षशील व्यक्ति की तरह है जो अपने लक्ष्य की प्राप्ति मे आने वाली सभी बढ़ाओ को अपनी ताकत बना लेता है।डेढ़ वर्ष की आयु में पोलियो से पूरा शरीर बेजान हुआ ग्रसित हुआ मगर हौसले को कोई क्षति ग्रस्त नहीं कर पाय। उस समय जब पोलियो ला इलाज बीमारी थी। डॉक्टर को दिखने पर पता चल की बालक को पोलियो हुआ है और माँ ने जब इलाज पूछा तो डॉक्टर साहेब का जबाब था की ये जो दिए गए तेल से जितनी मालिश होगी उतना जल्दी प्रभाव पड़ेगा।

माँ ने दिन देखा ना रात पागलो की तरह अपने लाल को किसी भी तरह खड़ा करने की लालसा मे ऐसा चमत्कार किया की 7 दिन मे बालक खड़ा होकर डॉक्टर के पास पहुँच कर नमस्कार किया तो डॉक्टर ने कहा ये चमत्कार है।जब आप मे कुछ कमी होती है तो जिज्ञाषा भी बढ़ती है की जब वो कर सकता है तो मै क्यों नहीं और इसी का जबाब दूंदते हुए ब्रजेश आगे बढ़ा और क्रिकेट जैसे मेहनत कस एवं महंगे खेल की ओर अग्रशर हुआ।

पिताजी राज्य परिवहन मे कंडक्टर थे और ३ भाई एवं बहन मे सब से छोटे। जब होश संभाला तो आर्थिक इसतिथि ऐसी थी जी ले यही काफी है मगर कहते है ना की “जब आँखों मे अरमान लिया मंजिल को अपना मान लिया। फिर मुस्किल क्या आसान क्या बस ठान लिया तो ठान लिया। “स्कूल जीवन मे एक संघर्ष ये था की माता पिता अपने बच्चो की फीस भर ले यही बहुत बड़ी उपलब्धि थी जो की किसी तरह पूरी हो जाती थी और उस पर क्रिकेट जैसे खेल का सामान खरीदना एक सपना होता था।

मगर दापति और प्लास्टिक बॉल से अपना मन हल्का कर लेते थे ।थोड़ा आगे सोचा तो बस बढाई के पास जाओ और उससे निवेदन करो की एक लकड़ी को बैट का आकर देदे। किसी तरह बैट बना तो 5 रुपए की स्पंच की बॉल कैसे खरीदे सो कपडे की गेंद बनाया अंदर कोई सड़क मे फटी बाल मिली उसीको उसको प्लास्टिक और फिर कपडे से लपेटा और सुरु हो गए। समय थोड़ा बदला तो टेनिस की बाल के लिए जद्दो जहद । खैर दोस्तों की मदद से वो भी हो गया।


अब बड़े हुए और लगा की हम सचिन नहीं तो राहुल तो बन ही सकते है मगर कैसे संभव हो लेदर बॉल और बैट, ग्लव्स तो केवल टीवी मे ही देखा है खरीदना तो कल्पना से परे था। एक सीनियर खिलाडी ने बाउंड्री मे बॉल उठाते देखा तो दया बस एक फटा बैट दिया बैट बीच से फटा हुआ था फेविकोल अंदर लगा के रेशम के धागे से उस्सकी गैटिंग करके तैयार किया तो लगा वर्ल्ड कप जीत गए। बस यही से करवा आगे बढ़ा। उस समय ग्राउंड मतलब खली बड़ी जगह जहा सब कुछ आप को ही करना पड़ेगा।

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3.30 को सुबह उठ कर साइकिल से 6 किलो मीटर आगे जा कर गाँधी स्टेडियम मे पाहिले पिच को रोल करना फिर उसके सूखने तक व्यायाम करना फिर दोपहर 12 तक जी तोड़ मेहनत कर वापस घर जा के फिर 3 बजे दोपहर फिर ग्राउंड मे उपलब्ध हो जाना। या सीलसिला १० साल तक चलते रहना।
दौड़ पाते नहीं ,थोड़ी सोहरत मिली तो लोगो ने रनर देने से मन किया। कई ऐसे मौके हुए जब इस बिपति को अपनी ताकत बनाना पड़ा मगर बोलिंग तो थी ना।

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लेफ्ट आर्म स्पिनर होने के कारन हमेशा बिरोधी को चकमा दिया । एक समय ऐसा भी आया की हर शहर गांव लोगो ने बुलाया और अच्छा करने पर अपने कंधे मे भी उठाया और कुछ पैसे जेव मे डाला।बड़े होते होते ये समझ मे आया की दिव्यांगता के कारण सामान्य क्रिकेट मे अपने करियर को आगे ले जाना संभव नहीं है। और एक क्रिकेट खिलाडी बनने का जो सपना संजो रखा था अटूट मेहनत कर के वो अब अधूरा सा लग रहा था। मगर एक चीज किसी इन्शान को टूटने नहीं देती वो है अपने परिवार का हौशला और दोस्तो का उत्शाहवर्धन।

भाई जहा अच्छे खिलाडी रहे वही मेरे दोस्त मेरे प्रतिद्वन्द्वी मगर एक बाद सब कहते थे की ” मंजिले मिल ही जाये गई भटकते हुए ही सही गुमराह वो है जो घर से निकलते ही नहीं “। बस फिर क्या था निकल पड़े दिव्यांग क्रिकेट की खोज मे। जब कंधे मे किट रख कर सफर मे निकले तो टी टी साहेब ने मेरी हालत देखते हुए भी कहा की आप स्लिपर मे चढ़े है।

तो 650 रूपया फाइन लगेगा, इतना तो मै टोटल ले के भी नहीं चला था जनरल बोगी मे घुसे तो बथरूम मे जगह मिले और इतनी भीड़ थी की मांगा हुआ जूता भी बथरूम मे छूट गया । भिलाई पहुंचे और ट्रायल दिया और 1999 में मध्य प्रदेश दिव्यांग क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला और यहीं से जो प्रोफेशनल क्रिकेट है उसकी मेरी शुरुआत हु। उस समय बुनियादी सुबिधाओ का आभाव तहत मगर ललक इन्शान को उन सब कमियों को नहीं सोचने देती क्यों की लक्ष बड़ा था भारतीय टीम मे जो पहुंचना था।

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2003 से 2007 तक मध्य रेलवे की तरफ से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला उसी दौरान तमिलनाडु के खिलाफ हुए एक मैच में 57 रन की शानदार पारी खेलते हुए मध्य रेलवे को जीत दिलाने में एक अहम योगदान देने की कोशिश की एवं 2007 मे आखिरी मैच शेष भारत बनाम राष्ट्रीय विजेता (छत्तीसगढ़ ) खेल कर खेल ख़तम क्यों की उस समय तक एक खास गेंद( प्रोसोफ्ट ) से हम दिव्यांगों की क्रिकेट होती थी और उस समय तक भारतीय टीम का निर्माण नहीं हुआ था। 2007 में परिस्थितियों ने अपने आपको और विकराल किया, नतीजा यह हुआ कि खेल से दूरियां बनाकर रोजगार ढूंढने के लिए खेल से दूरी बनाया। 2008 से मै एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी मे चयनित हुआ मगर सायद मेरी हालत देखते हुए मुझे नहीं चयनित किया गया।

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मगर मेरी भी जिद थी की अब नौकरी करूँगा तो इसी कंपनी मे और मै सफल भी हुआ 02 जून 2008 मे मै उसी कंपनी मे चयनित हुआ मगर दुसरे प्रदेश मे जहा मैंने 4125 रुपये से अपनी नौकरी की शुरुआत की। खूब मेहनत किया मगर जीवन मे एक टीश थी की काश मै अपने सपने पूरा कर सकता और सायद भगवन ने मेरी सुन ली। 2014 इंजीनियरिंग की एक श्रेष्ट संस्था भारतीय प्रोद्योगिकीय संस्थान इंदौर का एक इस्तिहार देखा और उसमे आवेदन दिया। कभी सोचा नहीं तहत की मै इसका हिस्सा बनूँगा पर ईश्वर ने एक नया आयाम प्रदान किया। यहा के वातावरण ने मुझे फिर से हौशला दिया की मै पुनः अपने पंखो से उड़न भरु और वही हुआ।


2017 में जीवन में एक टर्निंग प्वाइंट आया और राष्ट्रीय स्तर राष्ट्रीय दिव्यांग क्रिकेट प्रतियोगिता जिसका आयोजन अजमेर में हुआ वहां पर मध्य प्रदेश से खेलते हुए 71 रन की शानदार पारी खेली वही एक मैच में 4 विकेट लिया मेरे प्रदर्शन को देखते हुए चयनकर्ता एवं दिव्यांग क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया ने 2017 अक्टूबर में आयोजित हुई मैत्री कप(भारत- बंग्लादेश) मे मुझे देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया और तब से आज तक मै भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व कर रहा हु ।

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2021 मे जब सहारा देश कोरोना की चपेट मे था उस समय आई पी एल की तर्ज मे शारजाह ,यू ए ई मे आयोजित दिव्यांग प्रीमियर लीग मे मै बतौर मुंबई आइडियल्स कप्तान रहा श्रेस्ट प्रदर्शन किया और टीम सेमी फाइनल तक पहुंची।सब के आशीर्वाद से जो ताकत मिली उसी को उर्जा बनाकर आज भी अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हु और अब तक बंग्लादेश मे आयोजित होने वाली 4 देशों की बैंगबंधु सीरीज हो चाहे, भारत और नेपाल तपन ट्रॉफी हो या टाटा स्टीलीयम कप (भारत बांग्लादेश नेपाल सीरीज) चाहे वह भारत नेपाल सीसीएल कप सभी में अपने देश को प्रतिनिधित्व किया।


अगर अवार्ड और सम्मान की बात करें तो 2018 में मुझे माननीय सतना महापौर ने सतना स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया।सितंबर 2018 में ही उम्मीद हेल्प लाइन फाउंडेशन द्वारा दिव्यांग रत्न से नवाजा ।इनके जीवन में 2019 एक स्वर्णिम अध्याय की तरह है जिसमें उन्हे चार बड़े अवॉर्ड मिले हैं जिनमें से इंडिया स्टार पैशन आवर्ड 15 अगस्त को इंडिया स्टार बुक ऑफ रिकॉर्ड की तरफ से दिया गया।

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यूथ इंडिया डिवेलपमेंट बोर्ड की तरफ से मुझे इंडियास शाइनिंग स्टार का अवार्ड दिया गया। वहीं 11 अक्टूबर 19 को मध्यप्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित नेशनल स्पोर्ट्स टाइम अवार्ड में मुझे मध्यप्रदेश खेल रत्न से नवाजा गया। 21 अक्टूबर 19 को नेशंस पर्सनालिटी अवार्ड से सम्मानित किया गया। दिव्यांग क्रिकेटर ब्रजेश ने सतना टाइम्स से बात चीत के दौरान कहा कि आज मै एक खिलाडी के साथ साथ एक गर्डियन भी हु उन दिव्यांग खिलाडियो का जो क्रिकेट को मे अपना कैरियर बनाना चाहते है. मेरा प्रयास है की जो मुझे नही मिला वो उनको मिले l अंत मे एक ही बात कहूँगा की “जिंदगी जीना आसान नहीं होता बल्कि बनाना पड़ता है l कैसे ? कुछ सब्रा कर के , कुछ बर्दास्त कर के और बहुत कुछ नजरअंदाज़ करके”

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