“हमारा परिवार” : जिम्मेदारियों के बीच नहीं छोड़ा परिवार का साथ

सतना।।सुदर्शन प्रसाद गुप्ता पत्नी शिवकुमारी। बेटा-बहू – पुष्पराज – संगीता, पुष्पेंद्र- दीपा बेटी-दामाद-विद्या- रामहित, लक्ष्मी रामरुचि, पुष्पा – कमलेश, कृष्णा- बालमीक, आरती-अवनीश । नाती-पोते विवेक, पंकज, गोलू, पवन, सोनू, हिमांशू, नवीन, कान्हा, श्यामू, राजन, पारस, श्रषि, पूजा, उजाला, गायत्री, संध्या, प्रियांक, नीशू, वंदना, श्रृष्टी श्रेया, रंजना, श्रुति, खुशी, क्षमा, विन्नी, श्री, उमंग, मिस्टी, स्वास्तिक, आरव, आदी, ओम।
बच्चों को उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर करें। कहीं न कहीं। यह शिक्षा का ही प्रताप है कि वे अपने मानव धर्म का निर्वहन कर रहे हैं।आज हर कोई सफलता की जिम्मेदारियों को निभाते हुए कभी भी राह में है इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है। यही में जो भी सफलता मिलती है उसमें देखने को मिल रही है। जबकि मानव हमारे लिए पल यादगार हैं।
संयुक्त परिवार से एकल परिवारों में बसने का बड़ा कारण यह भी है कि आज के युवाओं में धैर्यता की कमी जीवन के रिश्तों को सहेजने की बात हो या संयुक्त परिवार को बांधकर एक साथ चलाने का कर्तव्य निभाना हो इसमें बहुत कुछ सहना पड़ता है। जिसके लिए धैर्य एक महत्वपूर्ण गुण है जो संयुक्त कर सकते हैं? परिवार की बसाहट के लिए अत्यंत आवश्यक है। 82 वर्षीय सुदर्शन प्रसाद गुप्ता निवासी रामपुर बघेलान सेमरिया ग्राम मौहारी जिला सतना ने युवाओं में संगठित रहने की भावना पर प्रकाश डाला और संयुक्त परिवारों को बढ़ावा देते हुए उनका महत्व समझने की बात कही।आपकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण वह कौन सा पल था जिसमें आपने सफलता पाई और वह किस तरह आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सकता है?
परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करना यही जीवन का ध्येय रहा। जबकि अपने बाद की पीढ़ी को शिक्षा के लिए प्रेरित किया शिक्षित बनाना मेरे जीवन का
अविस्मरणीय पल महत्वपूर्ण काम और सफलता रही।
अविष्मरीय पल
मैंने अपनी दो बड़ी बेटी ( विद्या और लक्ष्मी)की शादी एक साथ 1979 में किया।परिवार का साथ नहीं छोड़ा जीवन परिवार के सदस्यों का हाथ होता है। आपने जो अपनी विरासत संजोई है और जिंदगी में जो अनुभव प्राप्त किए हैं वे किस तरह भविष्य को बेहतर बनाने में मदद इंसानी जीवन के लिए भौतिकताओं की आवश्यकता होती है पर इंसानी रिश्तों में बनावटीपन हो, मेल- मिलाप न हो तो तमाम सारी वैभवता बेमानी लगने लगती है। कई बार ऐसे अवसर आए पर अपने परिवार को कभी बिखरने नहीं दिया। क्योंकि मेरे लिए मेरा परिवार प्रमुख है।
अपने शहर समाज और देश के लिए अब क्या करना चाहते हैं, और आज के पीढ़ी को क्या करने की जरूरत है? यह भी बच्चों को उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर करें। कहीं न कहीं यह शिक्षा का ही प्रताप है कि वे अपने मानव धर्म का निर्वहन कर रहे हैं।